BHAGWAT GEETA GYAN : दोस्तों इस लेख, BHAGWAT GEETA GYAN: कर्म करो फल की इच्छा छोड़ दो, से जानेंगे की हमें कर्म फल की इच्छा क्यों नहीं करनी चाहिए। भगवत गीता में कहा गया है कि कर्म करो फल की इच्छा छोड़ दो पर ये कोई नहीं बताता की आख़िर फल की इच्छा क्यों नहीं करनी चाहिए। तो चलिए जानते है BHAGWAT GEETA GYAN से कि हमें कर्मफल की इच्छा क्यों नहीं रखनी चाहिए।
विषय सूची
कर्म का फल जल्दी ना मिलने पर निराशा होती है
कर्म का फल जल्दी मिलते न दिखे तो इनसान निराश हो जाता है। निराशा से बचने के लिए उसे बताया जाता है कि ‘कर्म करें, फल की इच्छा न करें। फल में ध्यान न लगाएँ, बल्कि कर्म में ध्यान लगाएँ।’ वरना थोड़ा-सा कर्म करके ही इनसान जाँचने लगता है कि फल मिला या नहीं और यदि फल नहीं मिला तो वह निराश होकर कर्म करना छोड़ देते हैं।
कर्मफल जल्दी ना मिलने पर भावना लुप्त होने लगती है
इनसान जब काम शुरू करता है, तो उसका पूरा ध्यान काम पर होता है। घर में, ऑफिस में, कहीं पर भी कर्म करने के बाद ही उसका फल मिलता है। फल देखकर इनसान के साथ एक नई बात होती है, जो उसे जल्दी समझ में नहीं आती। कोई सेवा करता है तो शुरुआत में सेवा ही उसके लिए मुख्य होती है। कुछ समय के बाद उसे सेवा का फल मिलता है। फिर इनसान उस फल की तरफ़ ध्यान देने लगता है। 99 प्रतिशत लोगों से यह गलती होती है कि फल मिलने के बाद उनका फोकस कर्म से हट जाता है।
3. दूसरे रास्ते बंद न हो जाएँ
जब इनसान कर्म करता है और फल में अटकता है, तो उससे यह नुक़सान होता है कि जो दूसरा रास्ता उसके लिए खुलनेवाला है, वह उसे दिखाई नहीं देता। वह दुःख के गीत गाता रहता है, ‘ अब आगे से मैं किसी पर विश्वास नहीं करूँगा, किसी से प्रेम नहीं करूँगा, इस तरह इनसान अपने अज्ञान के कारण ये सब बोलता रहता है।
एक सुलझे हुए स्वभाव का डॉक्टर जब पेशंट से फीस लेता है, तो वह कहता है कि ‘पहले मैं पेशेंट को चेक करूँगा, ठीक करूँगा, बाद में मेरी फीस मुझे मिलेगी ही।’ कुदरत का कानून जाननेवाला डॉक्टर यह नहीं कहता कि ‘पहले मेरी फीस दो, बाद में मैं पेशेंट को चेक करूँगा।’ एक डॉक्टर जिस भावना के साथ पेशेंट की सेवा करता है, वह भावना असर करती है, वह भावना ही कर्मात्मा है।
4. नुक़सान और लापरवाही से बचें
जब लोग फल पर ध्यान देते हैं तो फल मिले या न मिले, नुक़सान ही होता है। कर्म का फल मिला तो लोग लापरवाह हो जाते हैं। जैसे—एक विद्यार्थी यह सोचकर लापरवाह हो जाता है कि ‘पिछली बार परीक्षा नज़दीक आने पर आखिरी दिनों में मैंने थोड़ी-सी पढ़ाई की और पास हो गया था, इसलिए इस बार भी ऐसा ही करूँगा’।
लेकिन इस बार जब लापरवाही के कारण वह फेल हो जाता है तो कहता है कि ‘इस बार मैं ओवर कॉन्फिडंस (Over confidence) की वज़ह से फेल हो गया।’ हालाँकि उसे यह पता नहीं है कि समय पर पढ़ाई न करके उसने लापरवाही की और अपनी इस वृत्ति के कारण वह फेल हो गया।
जब कर्म का फल आसानी से मिल जाता है तो अगली बार इनसान लापरवाही से काम करता है और इस कारण उसे परिणाम नहीं मिलता। कर्म को सबसे अच्छी तरह कैसे किया जाए, वह इस बात पर फोकस करता है और इसका उसे महाफल मिलता है। इसीलिए कहा गया है कि फल पर ध्यान न दें, फल की इच्छा न करें, क्योंकि फल न मिला तो निराशा आ घेरती है।
5. दूसरों पर निर्भर न रहें, परतंत्रता से बचें
‘कर्म करो और फल की इच्छा मत करो’ , ऐसा सोचनेवाले अपना कर्म करने के बाद, फल के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। आपने किसी को स्माइल दी तो सामनेवाला भी आपको स्माइल दे, यह ज़रूरी नहीं है। इसके लिए आप सामनेवाले के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते कि ‘ मैंने स्माइल दी तो तुम भी स्माइल करो, आपने अपना कर्म किया, अब सामनेवाला अपना कर्म करे या न करे, स्माइल दे या न दे, आपको देखे या न देखे, यह पूरी तरह उस पर निर्भर है। इसलिए कहा गया है कि फल की इच्छा न करें वरना आपके मन में विचार आएँगे कि सामनेवाले ने स्माइल नहीं दी तो आगे से मैं भी उसे स्माइल नहीं दूँगा। आप कर्म करने के लिए स्वतंत्र हैं, फल के लिए नहीं। इसीलिए कहा गया है कि फल में न अटकें।
6. वर्तमान के कर्म बिगड़ने से बचाएँ
फल पर ध्यान होने की वज़ह से इनसान वर्तमान का कर्म भी ठीक ढंग से नहीं कर पाता। जैसे—एक बच्चा परीक्षा देने का कर्म कर रहा है। उसके पिताजी उससे कहते हैं, ‘अगर तुमने परीक्षा में 90 प्रतिशत मार्क्स लाए तो मैं तुम्हें स्विट्जरलैंड ले जाऊँगा।’ अब वह बच्चा परीक्षा दे रहा है और सोच रहा है कि स्विट्जरलैंड में क्या-क्या होगा? आप समझ सकते हैं कि उसका परिणाम क्या आया होगा!
परीक्षा में उसे कम मार्क्स मिले। इस उदाहरण से आपने समझा कि फल पर ध्यान देने से क्या होता है। कर्म करते वक़्त अगर इनसान फल के बारे में सोचता रहे तो नुक़सान ही होगा। जब आप कर्म कर रहे हो तो सिर्फ़ अपना उच्चतम देने की कोशिश करें। कर्म पर ध्यान दें, यह न सोचें कि मेरे कर्म का श्रेय किसे मिलेगा और जो फल मिलेगा, वह कैसा होगा? यदि कर्म के फल में नहीं अटकेंगे तो आपको उस कर्म का महाफल मिलेगा।
7. फल को बोनस समझें, फल फेंकने से बचें
इनसान फल में ही अटक जाता है, फल न मिलने की वज़ह से दुःखी होता है, उसे निराशा महसूस होती रहती है। कुछ लोगों के लिए फल में अटकना बड़ा नुकसानदाई होता है, क्योंकि फल न मिलने पर अपने आप से उनका विश्वास उठ जाता है और वे हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि अब भविष्य में वे कुछ नहीं कर सकेंगे।
इस हीन भावना के कारण आगे के कर्म भी ठीक से नहीं हो पाते। कर्म का फल न मिलने पर कुछ लोगों का नुक़सान तो इससे भी बड़ा होता है। उनका ईश्वर पर से ही विश्वास उठ जाता है। ऐसा इनसान कहता है, ‘मैंने कर्म किया और उसका फल ही नहीं मिला, ईश्वर होता तो ऐसा नहीं होता… इसलिए अब मैं यह मानने को तैयार नहीं हूँ कि ईश्वर भी होता है।’ इस तरह फल में अटकने से, फल न मिलने के कारण इनसान का बहुत बड़ा नुक़सान होता है। इसीलिए कहा गया है कि ‘कर्म करो और फल की इच्छा मत रखो।’
8. इच्छा की आदत हो जाती है
BHAGWAT GEETA GYAN के अनुसार तीन तरह की इच्छाएँ होती हैं। पहली-स्थूल (बड़ी) इच्छाएँ, उदाहरण के लिए गाड़ी, बँगला, पद, प्रतिष्ठा, नाम, शोहरत इत्यादि मिलने की इच्छा। दूसरी—सूक्ष्म इच्छाएँ, उदाहरण के लिए सुख-सुविधा, सुरक्षा, श्रेय मिलने की इच्छा। तीसरी—अति सूक्ष्म इच्छाएँ, उदाहरण के लिए, जवानी सदा क़ायम रहे, बीमारी न आए, काम आसानी से हो जाए, काम में रुकावट न आए, जैसी इच्छाएँ।
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इन इच्छाओं में जीते-जीते इनसान इनका आदी हो जाता है। की बिना इच्छा के वह शांति से बैठ भी नहीं पाता। उसके मन में हर पल नई-नई इच्छाएँ जागती रहती हैं। हर चाहत के पूरा होते ही इनसान के मन में अहंकार जागता है। अहंकार काम पूरा होने का श्रेय ख़ुद लेता है। ‘मैंने किया’ , ‘मैं श्रेष्ठ हूँ’ का भाव जगता है। अहंकार का यह भाव भविष्य में दुःख ही लाता है। दुःख का निवारण तब होगा, जब हम इच्छा की इच्छा करने’ की आदत छोड़ देंगे। यह आदत मिटते ही हमें पता चलेगा कि इच्छा तब तक दुःख नहीं देती, जब तक हम उसके आसक्त नहीं हो जाते। इच्छा से अलगाव होते ही उससे मिलनेवाला दुःख समाप्त हो जाता है।
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Closing Remarks:
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