Jeff Keller: Attitude Is Everything Book Summary In Hindi: Jeff Keller बचपन से ही लॉयर बनने का सपना देखते थे और बढे हो कर उन्होंने लॉ स्कूल से लॉयर की डिग्री भी हासिल कर ली, सब कुछ उनके प्लान के हिसाब से हो रहा था इसलिए उन्होंने सादी भी कर लि। जेफ्फ को लग रहा था की वो एक सफल ज़िंदगी जी रहे है लेकिन लॉ करियर के कुछ साल बाद उन्हें ये पता लगा की ये काम इतना भी अच्छा नहीं है जितना उन्होंने सोचा था
वो अपने ज़िंदगी से परेशान रहने लगे उन्हें अपनी ज़िंदगी मीनिंग लेस लगने लगी थी और वो डिप्रेस रहने लगे जिससे 25 साल के उम्र में वो डिप्रेशन की वजह से वो 40 के दिखने लगे थे और जब उनकी उम्र 30 साल की हुई तो उन्हें लगा की मेरी ज़िन्दगी में इस न ख़तम होने वाली परेशानी और उदासी के अलावा कुछ तो होगा।
एक रात जब जेफ्फ को नींद नहीं आ रही थी तो तभी उन्होंने टीवी पर एक ऐड देखा। ऐड एक इनफार्मेशन प्रोडक्ट का था जिसका नाम था “मेंन्टल बैंक, जिसकी मदद से कोई भी इंसान आपने लाइफ बदल सकता था ये प्रोग्राम सबकॉन्सियस बिलीफ के बारें में था। जैसे ही जेफ्फ ने टीवी पर ये विज्ञापन देखा उन्हें लगा अब बस यही है जो उनकी मदद कर सकता है और उन्होंने तुरंत अपना क्रेडिट कार्ड निकाला और ये प्रोग्राम आर्डर कर दिया।
कुछ दिन बाद जब इस प्रोडक्ट की CD आयी तो जेफ्फ ने बड़े ही लगन से उनकी बातों को सीखा जिससे उन्हें बहुत ही पावरफुल बातें पता चला जिन बातों ने सच में उनमे बहुत से बदलाव लाये। इसके बाद जेफ्फ ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा उन्होंने बहुत सारी मोटीवेशनल किताबें पढ़ डाली।
जेफ ने जैसे ही एक नेगेटिव ऐटिटूड को छोड़के एक पॉजिटिव ऐटिटूड अपनाया, उन्हें अपनी ज़िंदगी में चौका देने वाले परिणाम दिखने लगे। अब जेफ्फ लॉयर के साथ साथ मोटिवेशनल स्पीच भी देने लगे और 1992 में उन्होंने अपनी लॉयर की जॉब छोड़के पूरे टाइम मोटिवेशनल स्पीकर का काम शुरू कर दिया।
जिसमें उन्हें काफी ज्यादा सफलता मिली, और इसके बाद जेफ्फ को कभी अपना काम, काम जैसा नहीं लगा वो जब भी अपनी स्पीच की तैयारी करते या कोई मोटिवेशनल लेख लिखते तो उन्हें ऐसा लगता की वो यही करने के लिए बने है।
जेफ्फ की ज़िंदगी में इतना बड़ा बदलाव कभी नहीं आता अगर वो ATTITUDE IS EVERYTHING को नहीं समझते इस किताब को लिखने से पहले जेफ्फ ने सक्सेस और ह्यूमन बिहेवियर पर 20 साल रिसर्च की है इस दौरान उन्होंने सैकड़ों किताबें पढ़ डाली कि क्यों कुछ लोगो को सफलता मिल जाती है और क्यों कुछ सोचने में ही अपनी जिंदगी बर्बाद कर देते है।
Jeff Keller: Attitude Is Everything Book Summary In Hindi
अगर आपको भी जेफ्फ की तरह अपनी ज़िंदगी बदलनी है तो आपको भी इन बातों को फॉलो करना होगा जो आज में इस वीडियो में आपसे शेयर करूँगा।
विषय सूची
Attitude Is Everything Book Summary In Hindi
आपका रवैया दुनिया के लिए आपकी खिड़की है – Your Attitude Is Your Window To The World
घर के बहार कितनी भी अच्छी सीनरी हो अगर घर का विंडो गन्दा हो तो आपको अच्छा नजारा भी बुरा ही दिखेगा। हर कोई आपने आसपास के लोगों को एक विंडोज से यानी की अपने ऐटिटूड से देखता है अगर वो विंडो गन्दा हो तो दुनिया उसे गंदी दिखती है और अगर विंडो साफ़ हो तो उसे दुनिया भी साफ़ और अच्छी लगेगी। इसलिए ये जरूरी है की हम अपने विंडोज को एकदम साफ़ रखें।
आईये इसे एक एक्साम्पल से समझते है एक बच्चा जब भी चलना सीखता है और वो गिर जाता है तब वो क्या करता है, मै आपको बताता हु की वो क्या नहीं करता वो कारपेट या ज़मीन को दोष नहीं देता वो अपने माँ बाप की ओर उंगली नहीं उठाता कि उन्होंने उसे गलत राश्ता दिखाया है, वो बच्चा हार नहीं मानता वो मुस्कुराता है और फिर से खड़ा होता है और वो तब तक ऐसा करता है जबतक वो चलना न सिख जाये।
उसकी मेन्टल विंडो बिलकुल साफ़ होती है उसे लगता है जैसे कुछ भी नामुमकिन नहीं लेकिन जैसा हम सभी जानते है एक ऐसा टाइम भी आता है जब ज़िंदगी हम पर गंदगी डालना शुरू कर देती है। हमारी मेन्टल विंडो गन्दी होने लगती है जब हमें स्कूल में कम नंबर लाने की वजह से डाटा जाता है, जब हमें एक दूसरे से कम्पेयर किया जाता है, जब हमें रोक टोक और गुस्से का सामना करना पड़ता है तो हमारी मेन्टल विंडो गन्दी होने लगती है और इन सब की वजह से हम अपना खुद पे विश्वास और पॉजिटिव ऐटिटूड कही खो देते है
अगर आप अपनी मेन्टल विंडो क्लीन नहीं करेंगे तो आप अपनी ज़िंदगी नेगेटिटविटी में गुजार देंगे और इसकी वजह से आप अपनी ज़िंदगी कभी खुल के नहीं जी पायेंगे, आपके पास जिंदगी जीने के दो राश्ते होते है पॉजिटिव ऐटिटूड और नेगेटिव ऐटिटूड। या तो आपके पास जो नहीं है उसी को सोच के पूरी ज़िंदगी रोइये या एक पॉजिटिव ऐटिटूड रखके आज आपके पास जो नहीं है उसे पाने के लिए काम करिये इस से आपको वो सब मिलेगा जो आप चाहते है
मै जनता हु आप सोच रहे होंगे की ये सब कहना बोहोत आसान है करना नहीं, इसलिए ऑथर ने 11 लेसन्स की मदद से बताया है की वो आप कैसे कर सकते है
आप एक मानव चुंबक हैं यानी की You Are A Human Magnet
कुछ लोग काफी सफल हो जाते है और कुछ लोग अपनी असलताओ से ही बाहर नहीं आ पाते, जेफ्फ ने सफलता की कुंजी को 6 शब्द में बताया है और आपको ये जानकार हैरानी होगी यही 6 शब्द ही आपको सफल बनाएंगे और यही 6 शब्द आपको असफल भी बनाएगी। We Became What We Think About मतलब हम वही बन जाते है जैसे हम खुद के बारे में सोचते है, यह ऐसे काम करता है: यदि हम किसी लक्ष्य के बारें में लगातार सोचते है तो हम उसकी और आगे बढ़ने का प्रयत्न आरंभ कर देंगे।
मान लीजिए एक आदमी है जो सोचता है की मै हर साल 10 लाख रूपए कमा सकता हूँ तो वो एक मानव चुंबक (human magnet) की तरह उन सभी रास्तों को ढूंढ लेगा जिस से वो 10 लाख रूपए कमा सके। अब दूसरा पहलु ये है अगर वो सोचे उसे अपने परिवार की समस्याओं को दूर करने के लिए 10 लाख रूपए कमाने चाहिए
अब क्या वो 10 लाख रूपए कमा सकता है, ये उस आदमी पे डिपेंड करता है की वो खुद पर कितना भरोसा करता है। अगर आप ये सोचें कि मैं 10 लाख रूपए कमा सकता हूँ और 10 लाख रूपए कमाने चाहिए, इसमें दो चीजें सामने आती है कमा सकता हूँ पॉजिटिव ऐटिटूड और कमाने चाहिए नेगेटिव ऐटिटूड।
अगर आपका खुद पे भरोसा है कुछ करने की हिम्मत है तो आप एक दिन 10 लाख रूपए जरूर कमा लेंगे। दोस्तों असफलता बस एक स्पीड ब्रेकर की तरह होता है जो हमारे सपनो के राश्ते में आकर बस हमें टेस्ट करता है और अगर हम में एक पॉजिटिव ऐटिटूड नहीं होगा तो यही स्पीड ब्रेकर हमें पहाड़ जैसा लगने लगेगा और हम इस ब्रेकर को पार करने के बजाय वही हार मान जायँगे इसीलिए जब भी आप अपनी ज़िंदगी में कुछ नया शुरू करिये तो ये बात याद रखियेगा की असफलता बस हमें ये दिखाने आती है की हमें अपने सपने को पाने की कितनी चाहत है।
अपनी सफलता की कल्पना करें यानी की Picture Your Way to Success
एक इंटरव्यू में प्रसिद्ध गायिका सेलिन डिओन से पूछा गया कि क्या उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में कभी सोचा था कि उनके लाखों रिकॉर्ड बिकेंगे और वे टूर पर रहकर हर सप्ताह, कई हजार लोगों के सामने गाना गाएँगी? इन गायिका ने जवाब दिया कि इनमें से किसी भी बात पर उन्हें आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि इस तरह की कल्पना उन्होंने तभी कर ली थी जब वे केवल 5 वर्ष की थीं!
इसलिए हमारा पहला कदम, अपने इच्छित परिणाम की छवि का निर्माण करना है। आपको केवल अपनी कल्पना ही सीमित कर सकती है। आप जानते होंगे कि बहुत से लोग सार्वजनिक सभा में संबोधित करने से घबराते हैं। कई तरह के सर्वे करने के बाद पाया गया कि यह लोगों का सबसे बड़ा डर है, जो मौत के डर से भी कहीं आगे है!
आइए देखें कि जब लोगों से भाषण देने के बारे में सिर्फ सोचने भर के लिए भी कहा जाए, तो उनके मन में किस तरह के चित्र उभरने लगते हैं? वे स्वयं को श्रोताओं के सामने घबराए हुए खड़ा देखते हैं। शायद वे जो कहना चाहते हैं, उसे याद करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। यदि अपने मानस-पटल पर आप इन छवियों को बार-बार दोहराएँ, तो यकीन मानें कि आप एक वक्ता के रूप में कोई खास सफलता हासिल नहीं कर पाएँगे!
इसके बजाय अपने मन में इस तरह की छवि बनाएँ कि आप आत्मविश्वास से भरे हुए अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं। श्रोतागण आपके हर शब्द को ध्यान से सुन रहे हैं। आपने श्रोताओं को एक मज़ेदार वाकया सुनाया है और वे हँस रहे हैं। अंत में वे बड़ी गर्मजोशी से आपके लिए तालियाँ बजा रहे हैं। बाद में लोग आपको बधाई देने आ रहे हैं। क्या आप देख पा रहे हैं कि ऐसे मानसिक चित्र, किस तरह एक बेहतर वक्ता बनने में आपकी सहायता कर सकते हैं?
हालांकि, ध्यान रखें कि आपके मन में उभरी इस तरह की तस्वीरें, रातों-रात वास्तविकता में साकार नहीं हो्तीं। हाँ, लेकिन यह तय है कि धैर्य के साथ लगातार इस तरह की मानसिक तस्वीरों/फिल्मों पर अपना ध्यान केंद्रित कर, आप ऑटोमैटिकली उन तरीकों से कार्य करने लगेंगे, जो आपके स्वप्न साकार करने में सहायक सिद्ध होंगे।
प्रतिबद्ध हो जाएँ और दुनिया हिला दें यानी की Make a Commitment and You’ll Move Mountains
आईये इसे एक शानदार स्टोरी से समझते है जो की है न्यूपोर्ट बीच (कैलिफोर्निया) के निवासी बेंजामिन रोल की कहानी। रोल ने 1990 में, 67 वर्ष की उम्र में, लॉ स्कूल से ग्रेजुएशन किया। स्वाभाविक था कि उन्हें अपनी कानूनी प्रैक्टिस शुरू करने से पूर्व कैलिफोर्निया बार एक्जाम पास करनी पड़ती।
इस एग्जाम को पास करने के अपने पहले प्रयास में वे फेल हो गए। दूसरी बार भी वे फेल हो गए। फिर तीसरी, चौथी, फिर तेरहवीं बार असफल हुए। मैं आपको बता दूँ- बार एग्जाम साल में केवल 2 बार दी जा सकती है। इसलिए जब वे अपने तेरहवें प्रयास में असफल रहे, तब वे 73 वर्ष के हो चुके थे।
अधिकतर लोग इतने प्रयासों के बाद हार मान लेते लेकिन बेंजामिन रोल ऐसे नहीं थे! उन्होंने चौदहवीं बार एग्जाम दिया और इस बार पास हो गए! 1997 में, 74 वर्ष की उम्र में, उन्हें कैलिफोर्निया राज्य में कानूनी प्रैक्टिस करने की अनुमति मिल गई.. तो ये हैं वे व्यक्ति, जो committed थे और किसी भी कीमत पर अपने लक्ष्य की प्राप्त करना चाहते थे।
क्या इस कहानी से आप समझे कि एटिट्यूड का कितना महत्व है? अधिकतर लोग 60 साल की उम्र के बाद लॉ स्कूल में जाने की सोचते भी नहीं। और ये ऐसे व्यक्ति है, जिन्होंने न केवल 67 वर्ष की उम्र में लॉ स्कूल में प्रवेश लिया बल्कि ग्रेजुएशन के बाद, बार एग्जाम पास करने के लिए 6 वर्ष तक डटे रहे। बेंजामिन रोल की कहानी इस बात का एक और पुख्ता सबूत है कि “एटिट्यूड इज़ एवरीथिंग”
अब चूँकि आप प्रतिबद्धता की शक्ति के बारे में जान चुके हैं, इस सिद्धांत को अमल में लाने का समय आ गया है। तो आगे बढ़ें। एक ऐसा लक्ष्य चुनें , जिसे प्राप्त करने की तीव्र इच्छा आपके मन में हो। इस बात के लिए प्रतिबद्ध हो जाएँ कि चाहे जो भी हो, आप अपना लक्ष्य हासिल करके ही रहेंगे। आगे बढ़ें एवं अपने मार्ग में आने वाले सभी अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने एवं उनका लाभ उठाने के लिए तैयार हो जाएँ। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दृढ़ निश्चय के साथ कार्य करते रहें और सफलता प्राप्त करने के लिए तैयार रहें!
समस्याओं को अवसरों में बदलें यनी की Turn Your Problems Into Opportunities
आईये इसे एक एक्साम्पल से समझते है डेव ब्रूनो एक चिकित्सा उपकरण बनाने वाली कंपनी में नेशनल सेल्स मैनेजर के रूप में काम करते थे। सब ठीक-ठाक चल रहा था। लेकिन 1984 में ब्रूनो ने अपनी नौकरी गँवा दी। उसी बेरोजगारी की हालत में, एक रात ब्रूनो घर जा रहे थे तो उनकी कार रोड से नीचे उतर गई और क्षतिग्रस्त हो गई । वे गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके फेफड़े दब गए, पसलियाँ टूट गईं, दिल में घाव हो गया और लिवर फट गए। डॉक्टरों को भी पता नहीं था कि वे जीवित रह पाएँगे या नहीं। ब्रूनो ने भी यही सोचा था कि वे मर जाएँगे।
3 दिनों तक लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर ज़िंदगी और मौत के बीच झूलने के बाद, वे चमत्कारिक रूप से बच गए। ब्रूनो को ऐसा महसूस हुआ जैसे उन्हें दूसरा चांस दे दिया गया हो। हॉस्पिटल में रिकवरी के दौरान, उन्होंने अपने future के बारे में सोचना शुरू कर दिया। उनके मन में कुछ कौंधा, और वे समझ गए कि आगे क्या करना है। वे एक ऐसा व्यवसाय शुरू करेंगे, जिसके द्वारा motivational quotes को अन्य लोगों के साथ साझा किया जा सके, ताकि वे भी इनसे प्रेरित हो सकें।
लेकिन उन्हें पता नहीं था कि वे यह सब कैसे करेंगे। हॉस्पिटल से घर आने के बाद एक और बुरा समाचार उनका इंतज़ार कर रहा था। उनके भारी मेडिकल बिलों एवं उनके काम करने की असमर्थता के कारण, उन्हें अपना दिवालियापन घोषित करना पड़ा। उन्होंने अपना घर खो दिया और वे अपने परिवार सहित एक छोटे से अपार्टमेंट में रहने लगे। अभी तक ब्रूनो ने अपने सपने का साथ नहीं छोड़ा था। एक दृढ़ निश्चय और पॉजिटिव एटिट्यूड के साथ वे फिर आगे बढ़े। अगले कुछ सालों में उन्होंने ऐसे जॉब किए जहां मार्केटिंग और प्रिंटिंग सीख सकें।
अपने इन quotes के प्रदर्शन के लिए वे किसी माध्यम की तलाश में थे। एक दिन बिजली की तरह एक विचार उनके दिमाग में कौंधा -वे इन उद्धरणों को क्रेडिट कार्ड पर छाप सकते हैं। उस दिन शाम को टीवी देखते समय उनकी नजर एक क्रेडिट कार्ड कंपनी के “गोल्ड कार्ड” के विज्ञापन पर पड़ी। उन्होंने सोचा कि यह तो और भी बढ़िया है। वे उन quotation को मैटलिक गोल्ड कार्ड पर प्रिंट करेंगे, जिससे लोग जहाँ चाहे वहाँ उन्हें अपने साथ ले जा सकेंगे।
इसके लिए उन्होंने एटिट्यूड, नेतृत्व (लीडरशिप), साहस और दृढ़ता आदि विषयों पर आधारित उद्धरणों की एक श्रृंखला का निर्माण किया। उन्होंने इस तरह के कार्ड को “सक्सेस गोल्ड कार्ड” का नाम दिया। हॉस्पिटल छोड़ने के 5 वर्ष बाद, डेव ब्रूनो ने पहला ’सक्सेस गोल्ड कार्ड’ बेचा था। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि अब तक, वे इस तरह के दो मिलियन से भी ज़्यादा कार्ड बेच चुके हैं। डेव ब्रूनो ने एक त्रासदी भरी दुर्घटना को एक अविश्वसनीय जीत में बदल दिया था।
अपने शब्दों को पथ-प्रदर्शक बनाएँ यनी की Your Words Blaze a Trail
यदि मैं किसी से कहता हूँ कि मैं कुछ करने जा रहा हूँ, तो मुझे वह काम करना ही होगा! इसे अंग्रेजी में” बर्निंग यूअर ब्रिजेज” कहा जाता है; जिसका अर्थ होता है, पीछे लौटने के सारे रास्ते बंद कर देना। कभी-कभी जीवन में आगे बढ़ने या किसी महत्वाकांक्षी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, यह तरीका कारगर साबित होता है। उदाहरण के तौर पर ज़िग ज़िगलर है जो एक प्रसिद्ध मोटिवेशनल स्पीकर हैं।
उन्होंने निश्चय किया कि वे डाइटिंग करेंगे और अपना वजन 202 पाउंड से घटाकर 165 पाउंड तक ले आएँगे। उस समय वे अपनी पुस्तक ‘सी यू एट द टॉप’ का लेखन कर रहे थे। इस पुस्तक में उन्होंने एक वक्तव्य दिया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि उन्होंने अपना वजन 165 पाउंड तक घटा लिया है। यह घटना, उनके लेखन के प्रेस में जाने के 10 महीने पहले की थी; और फिर उन्होंने अपने प्रिंटर को, उस पुस्तक की 25,000 प्रतियाँ बनाने का ऑर्डर दे दिया। ध्यान रहे कि जब ज़िगलर ने यह वक्तव्य दिया, वास्तव में उनका वजन 202 पाउंड था।
उन्होंने 25,000 लोगों के सामने अपनी” विश्वसनीयता दाँव पर लगा दी थी! अपनी पुस्तक में यह वक्तव्य देकर कि उनका वजन 165 पाउंड है, ज़िगलर जानते थे कि उन्हें पुस्तक की छपाई से पूर्व 37 पाउंड कम करने हैं। और उन्होंने इसे कर दिखाया! इस रणनीति को चुनिंदा लक्ष्यों के लिए ही आज़माएँ। इसे उन लक्ष्यों तक ही सीमित रखें जो आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं और जहाँ आप किसी भी हद तक अपनी प्रतिबद्धता कायम रख सकते हैं। क्या यह तरीका जोखिम भरा है? जी हाँ, बेशक! लेकिन यह उतना ही प्रेरक भी है!
शिकायतें करना बंद करें यनी की Stop Complaining
मैं आपको यह सुझाव नहीं दूँगा कि आप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें और अपने जीवन में आने वाली सभी समस्याओं को अनदेखा कर दें। बल्कि शिकायत करने के बजाए, यह ज़्यादा बेहतर होगा कि आप अपना ध्यान और ऊर्जा, उन्हें सुलझाने या कम करने की दिशा में केंद्रित करें।
उदाहरण के तौर पर मान लें कि आजकल आप थोड़ा थका हुआ महसूस कर रहे हैं। हर व्यक्ति को अपनी थकान के बारे में बताने के बजाय, आप अधिक व्यायाम करना शुरू कर दें या फिर रात में थोड़ा जल्दी सोना शुरू कर दें।
शिकायतें आपके विरुद्ध 3 तरह से कार्य करती हैं। पहले- कोई भी आपकी तबियत या समस्याओं के बारे में नेगेटिव खबर नहीं सुनना चाहता; दूसरे- शिकायत करने से आप खुद अपनी पीड़ा और असुविधा को बढ़ा लेते हैं।
इसलिए बार-बार दुखी और नेगेटिव घटनाओं को याद करने से क्या फायदा? तीसरे- शिकायत खुद कुछ हासिल नहीं करती उल्टा आपको, अपनी स्थिति को सुधारने के लिए किए जाने वाले उपायों से विमुख कर देती है। कहा जाता है कि 90% लोगों को आपकी समस्या से कुछ लेना-देना नहीं होता…। और शेष 10% आपको समस्याग्रस्त देख कर खुश होते हैं! इसलिए पॉजिटिव लोगों की श्रेणी में आ जाएँ- जिससे आप को सामने से आते देख, लोगों को अपना रास्ता न बदलना पड़े!
पॉजिटिव ऐटिटूड वालों से दोस्ती करें यनी की Associate With Positive People
आईये इसे एक एक्साम्पल से समझते है जब माइक हाई स्कूल में था तो पड़ोस के कुछ बच्चों के साथ समय बिताता था। माइक के अनुसार उनका न तो कोई लक्ष्य था और न ही कोई कोई सपने! वे हमेशा नेगेटिव बातें करते थे। जब भी माइक उनसे कुछ नया करने के लिए कहता था तो वे उसे हतोत्साहित कर देते थे। वे उससे कहते थे “यह बेवकूफी है। माइक उनके साथ इसलिए रहता था ताकि वह उस समूह का हिस्सा बना रहे सके।
जब माइक कॉलेज में पढ़ने गया, तब भी उसका सामना नेगेटिव सोच रखने वाले कुछ लोगों से हुआ। लेकिन उसे ऐसे भी लोग मिले जो पॉजिटिव सोच वाले थे.. जो कुछ सीखना चाहते थे.. जो कुछ हासिल करना चाहते थे। माइक ने इस तरह के पॉजिटिव सोच वाले लोगों के साथ समय बिताने का निश्चय किया।
अचानक वह अपने बारे में कुछ बेहतर महसूस करने लगा। उसने एक बढ़िया एटिट्यूड विकसित कर लिया था। उसने अपने लक्ष्य तय करना शुरू कर दिया। ऑथर कहते है की मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि अब माइक एक सफल वीडियो प्रोडक्शन कंपनी का मालिक है और उसका एक प्यारा सा परिवार है। वह अपने लक्ष्यों को, एक के बाद एक हासिल करता जा रहा है।
जब ऑथर ने माइक से पूछा कि उसके हाई स्कूल के दोस्त क्या कर रहे हैं तो उसने ऑथर को बताया- “वे अभी भी वहीं रहते हैं। उनकी सोच अब भी उतनी ही नेगेटिव है…. और उन्होंने अब तक अपने जीवन में कुछ भी नहीं किया है! माइक ने कहना जारी रखा, “यदि मैं उन्हीं लोगों के साथ घूमना जारी रखता तो आज मैं जहाँ हूँ, वहाँ नहीं पहुँच पाता।
मैं अब भी नुक्कड़ की दुकान पर बैठकर झख मार रहा होता। माइक की कहानी इस बात का जीता-जागता सबूत है कि अपने आसपास के माहौल और लोगों का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है! इसके बावजूद हम कभी-कभी कुछ निश्चित लोगों के साथ रहने के आदी हो जाते हैं- और इस बात पर विचार ही नहीं करते कि इसका क्या परिणाम हो सकता है।
अपने डर से मुकाबला कर आगे बढ़ें यनी की Confront Your Fears and Grow
मैं आपको एक ऐसी महिला की कहानी सुनाना चाहता हूँ, जो कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकलने के बारे में बहुत कुछ जानती हैं। उनका नाम डॉटी बर्मैन है जो 32 सालों तक न्यूयॉर्क के एक हाई स्कूल में इंग्लिश की टीचर रह चुकी हैं। हालांकि 10 वर्ष की उम्र से ही वे शो बिजनेस में जाना चाहती थीं।
फिर भी उन्होंने एक करियर के रूप में टीचर का सुरक्षित जॉब चुना। डर की कैद से बच निकलने का एकमात्र रास्ता यही है कि उसका सामना किया जाए। टीचर के रूप में कार्यरत रहते हुए, डॉटी ने गाने लिखना और उनकी प्रस्तुति करना शुरू कर दिया।
हालांकि यह सिर्फ शौकिया तौर पर था, लेकिन इसने उनके सपने को ज़िंदा रखा। फिर 1980 के अंत में डॉटी ने एक निर्णय लिया कि वे टीचिंग को छोड़कर एक परफॉर्मर के रूप में अपना नया करियर शुरू करेंगीं। 88 की गर्मियों में उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया। फिर एक अनजाने डर ने उन पर कब्जा कर लिया। किसी अपरिचित क्षेत्र में कदम रखने के ख्याल से, वे इतनी डर गईं कि उन्होंने अपना इस्तीफा वापस ले लिया और फिर से बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।
किंतु डॉटी के भीतर कुछ था जो उनके सपने को मरने नहीं दे रहा था। 6 महीने बाद यानी 1989 की जनवरी में, उन्होंने अपने डर पर काबू पा लिया और रिटायर हो गईं। तब वो 50 साल की हो चुकी थी। 1982 में डॉटी ने एकपात्री म्यूजिकल शो प्रस्तुत किया, जिसे खुद उन्होंने तैयार किया था।
1998 में यानी अपनी उम्र के 60 वे साल में, उन्होंने अपनी बेहतरीन सीडी निकाली जिसका नाम था – आई एम इन लव विद द कंप्यूटर। उन्होंने न केवल न्यूयॉर्क सिटी के एक कैबरे में किए गए म्यूजिकल रिव्यू (revue) में, बल्कि देशभर के कई संस्थानों में इसे परफॉर्म किया था। इस तरह से डॉटी ने, आपने अपने डर से मुकाबला किया और हमें अपने सपनों के पीछे भागने के लिए प्रेरित किया।
दोस्तों आप अपने डरों से मुकाबला करके ही आप अपनी क्षमता को विकसित कर सकते हैं तथा एक ऐसा सक्रिय एवं परिपूर्ण जीवन जी सकते हैं, जिसके आप हकदार हैं। ऐसा फैसला करने पर आपको कभी पछतावा नहीं होगा!
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असफलता से न घवराएँ यनी की Get Out There and Fail
असफलता से विचलित न हों मैं आपको ऐसे 2 लोगों की कहानी बताना चाहता हूँ जिन्होंने प्रेरक कहानियों के संग्रह पर एक पुस्तक लिखी थी। उनका अनुमान था कि उसके लिए किसी प्रकाशक को ढूँढने में 3 माह का समय लगेगा।
वे सबसे पहले जिस प्रकाशक के पास गए ,उसने उनकी पुस्तक प्रकाशित करने से मना कर दिया। दूसरे प्रकाशक ने भी मना कर दिया। तीसरे प्रकाशक ने भी मना कर दिया। अगले 30 प्रकाशकों ने उन्हें मना कर दिया।
आपको क्या लगता है कि अगले 3 सालों तक, 33 बार ना सुनकर उन्होंने क्या किया होगा? उन्होंने अपनी पुस्तक 34 वें प्रकाशक को दी। इस प्रकाशक ने उन्हें ‘हाँ ‘कर दी। इस तरह 33 बार “असफलता” का सामना करने के बाद जिस पुस्तक का विमोचन हुआ, उसका नाम था- ‘चिकन सूप फॉर द सोल’। जैक कैनफील्ड और मार्क विक्टर हेन्सन द्वारा लिखित एवं संकलित इस पुस्तक ने सफलता के झंडे गाड़ दिए।
अब तक ‘ चिकन सूप फॉर द सोल’ सीरीज की 100 मिलियन कॉपियाँ बिक चुकी हैं! यह सब इसलिए संभव हो पाया क्योंकि जब तक जैक कैनफील्ड और मार्क विक्टर हेन्सन ने सफलता हासिल नहीं कर ली, बार-बार असफल होने तथा अपना काम जारी रखने के अपने निश्चय पर अडिग रहे।
वह क्या था जिसने जैक कैनफील्ड और मार्क विक्टर हैंडसम को 33 असफलताओं के बाद भी अपने निश्चय पर टिकाए रखा? वह था उनका एटिट्यूड! यदि वे लोग नेगेटिव एटिट्यूड वाले होते, तो अपने पहले दूसरे प्रयासों के बाद ही हार मान चुके होते, और फिर उनके हाथ यह कुबेर का खज़ाना नहीं लगता। लेकिन उन्होंने बार-बार असफलता हाथ लगने पर भी, उत्साह के साथ अपना एटिट्यूड पॉजिटिव ही बनाए रखा।
विजेता वे हैं जो जानते हैं कि जीवन में किसी बच्चे की तरह, दौड़ना सीखने के पहले चलना ज़रूरी है और चलना सीखने के पहले रेंगना ज़रूरी है। इतना ही नहीं, हर नया लक्ष्य असफलता का एक नया समूह लेकर आता है।
यह आप पर निर्भर करता है कि आप इस तरह की निराशा को अस्थायी रुकावट या चुनौती समझकर उसे मात देते हैं या फिर उसे अजेय समझकर उससे हार मान लेते हैं। यदि आप अपनी हर पराजय से सीखने का निश्चय कर लें और अपने अंतिम परिणाम पर ध्यान केंद्रित कर लें; तो असफलता, अंततः आपको सफलता दिलवाकर ही रहेगी।
तो दोस्तों इस आर्टिकल में बस इतना ही आपको ये आर्टिकल कैसी लगी हमें कमेन्ट कर के जरूर बताये। अगर आप इस बुक का कम्पलीट वीडियो समरी देखना चाहते है तो ऊपर दिए लिंक से देख सकते है।
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