Top 100 Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit – कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे: दोस्तों इस आर्टिकल में, मैं आपसे कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे (Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit ~ कबीर के दोहे हिन्दी अर्थ सहित) आपसे साझा करूँगा।
जैसा का आप सभी जानते है संत कबीर दास जी ने अपने दोहों के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार किया एवं समाज का मार्गदर्शन किया है। संत कबीर दास जी के एक-एक शब्द का अर्थ बहुत गहरा होता है।
इस पोस्ट में आपको मिलेंगे संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे जो आपको जिंदगी जीने का रास्ता दिखाते हैं। तो चलिए शुरू करते है संत कबीर के पहले दोहे से।
कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे (Popular Dohe of Kabir Das)
Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit ~ कबीर के दोहे हिन्दी अर्थ सहित
विषय सूची
दोहा – 01
अंत कतरनी जीभ रस, नैनों उपला नेह ।
ताकी संगति रामजी, सपनेहू मद देह ॥
हिंदी अर्थ: वह व्यक्ति जिसके दिल में बुरी भावना होती है, आँखों में स्नेह और होंठों पर मिठास, हे भगवन्, सपने में भी मुझे ऐसी संगत में जाने मत देना।
यदि आपको किसी व्यक्ति की मंशा और कार्यों में दोहरापन नजर आता है तो यह जान लीजिए कि वह व्यक्ति ऐसा नहीं, जिसकी संगत में आपको रहना चाहिए। ~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 02
हिये कतरनी जीभ रस, मुख बोलन का रंग ।
आगे भले पीछे बुरा, ताको तजिए संग ॥
हिंदी अर्थ: वह जो मीठी बोली बोलता है और जिसमें वाक्पटुता होती है, यदि वह आपके सामने कुछ और पीछे कुछ और बोलता है तो उससे भी बचिए।
ऐसे लोग अपने विचार, अपना पक्ष और स्थान बदल सकते हैं।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 03
आगे दरपन ऊजला, पीछै विषम विवकार ।
आगे पीछे आरसी, क्यो न पड़े मुखछार ॥
हिंदी अर्थ: दर्पण का एक उजला और एक काला पक्ष होता है, जो दो-दो चेहरे रखते हैं, उन्हें आलोचना सहनी पड़ती है। चमकनेवाली हर चीज सोना नहीं होती।
हर कोई जो सही बात कहता है, जरूरी नहीं कि उसकी मंशा भी सही हो। इस बात को लेकर सतर्क रहें कि आप किससे बात करते हैं और क्या बात करते हैं।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 04
कछु कहि नीच न छेडि़ए, भलो न वाको संग ।
पत्थर डारे कीच में, उछलि बिगाड़े अंग ॥
हिंदी अर्थ: बुरे लोगों का संग खतरनाक होता है, यदि आप कीचड़ में पत्थर फेंकेंगे, तो गंदगी आपके ऊपर ही आएगी।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 05
कबीर सो धन संचिए, जो आगे को होय ।
सीस चढ़ाए गाठरी, जात न देखा कोय ॥
हिंदी अर्थ: कबीर कहते हैं, ऐसे तरीके अपनाइए और सम्मान इस प्रकार हासिल कीजिए, जो टिकाऊ हो, जो मौजूदा समय और हालात से आगे भी बरकरार रहे।
सच्चे रास्ते पर चलकर सम्मान हासिल करो; क्योंकि विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा के बिना सफलता न केवल खोखली, बल्कि लँगड़ी भी होती है।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 06
खट्टा – मीठा चरपरा, जिभ्या सब रस लेय ।
चारों कुतिया मिलि गई, पहरा किसका देय ॥
कबीर कहते हैं, हम जो कुछ खाते हैं, उसके लिए जीभ को संरक्षक का कार्य करना चाहिए, ताकि हमारी सेहत का खयाल रखा जा सके। यह दुःखद है कि जीभ स्वाद का गुलाम बन जाता है और सिर्फ स्वाद को संतुष्ट करने लगता है, जिससे शरीर का स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाता है।
कुत्ते से अपेक्षा की जाती है कि वह हमारे घर की रखवाली करेगा। यदि कुत्ता चोरों से मिल जाए तो समझिए तबाही निश्चित है।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 07
कबीर तहाँ न जाइए, जहाँ न चोखा चीत ।
परपूटा औगुण घना, मुहड़े ऊपर मीत ॥
हिंदी अर्थ: कबीर, वहाँ मत जाइए जहाँ नीयत साफ न हो, पीठ पीछे आपकी आलोचना करते हैं, लेकिन सामने दोस्त बने रहते हैं।
कबीर हमें सुझाव देते हैं कि हमें साफ नीयतवाले लोगों की संगत में रहना चाहिए, ऐसे लोग जो दूसरों का बुरा नहीं चाहते, अपने विचार अकसर नहीं बदलते और सिर्फ अपनी स्थिति को बनाए रखने की प्रेरणा से काम करते हैं, जबकि साफ नीयत न रखनेवाले हमारी सोच को संकीर्ण बना देते हैं।
वे ऐसे होते हैं, जो मुँह पर हमारी तारीफ करते हैं , लेकिन पीठ पीछे कुछ और ही कहते हैं। हमें जल्दी ही यह पता चल जाता है और अविश्वास की एक परत दिखने लगती है, जिसके कारण बातचीत में बनावटीपन आ जाता है।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 08
कबीर तहाँ न जाइए, जहाँ कपट को हेत ।
नौ मन बीज जू बोय के, खाली रहेगा खेत ॥
हिंदी अर्थ: कबीर, वहाँ मत जाइए, जहाँ धोखा देने की नीयत हो। बोरी बीज से भरी क्यों न हो, खराब मिट्टी में फसल नहीं उगेगी। अच्छी फसल के लिए अच्छी मिट्टी चाहिए। ऐसी जमीन, जिसमें सही गुण न हों, उस पर अगर एक बोरी बीज भी डाल दिए जाएँ तो भी फसल नहीं उग सकती है।
आप जिस संगत में रहते हैं, वह बिल्कुल ऐसी ही होती है। हम चाहे कुशाग्र, बुद्धिमान, सक्षम और काबिल क्यों न हों, गलत संगत में ज्यादा समय बिताने से हमारा उत्साह समाप्त हो सकता है, क्षमता कुंद पड़ सकती है और अधिक तथा बेहतर करने की प्रेरणा समाप्त हो सकती है।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 09
पंडित पोथी बांधि के, दे सिरहाने सोय ।
वह अक्षर इनमें नहीं, हसि दे भावै रोय ॥
हिंदी अर्थ: आप जितनी पुस्तकें पढ़ते हैं, उन सभी में ज्ञान है, किंतु यह ज्ञान नहीं कि उदास चेहरे पर मुसकान कैसे लाई जाए। कबीर ऐसे इनसान से कहते हैं कि उसे न सिर्फ किताबों, शब्दजाल और सिद्धांतों पर भरोसा करना चाहिए, बल्कि उसमें अन्य मनुष्यों के साथ जुड़ने की क्षमता भी होनी चाहिए।
सच यही है कि चाहे कितने ही सिद्धांत क्यों न दिए गए हों, किसी में भी रोते इनसान को हँसा देने की क्षमता नहीं है।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 10
हेत प्रीति से जो मिले, तासों मिलिए धाय ।
अंतर राखी जो मिलै, तासो मिले बलाय ॥
हिंदी अर्थ: जो सच्चे स्नेह से मिले, उससे खूब प्रेम से मिलिए, किंतु उससे बचिए, जिसके दिल में बुरी भावना है।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 11
सोऊँ तो सुपनै मिलूँ, जागूँ तो मन मांहि ।
लोचन राता सुधि हरी, बिछुरत कबहूँ नांहि ॥
हिंदी अर्थ: सपनों में जब मैं सोता हूँ, विचारों में जब जागता हूँ, तुम्हारी खोज में आँखें लाल हो जाती हैं, मेरी प्रार्थना है कि आप कभी दूर न रहें। ~ Kabir Das Ke Dohe
दोहा – 12
एक साधै सब सधे, सब साधै सब जाय ।
माली सीचै मूल को, फूलै फलै अघाय ॥
हिंदी अर्थ: एक पर ध्यान लगाएँगे तो सबकुछ मिल सकता है। सब पर ध्यान लगाइए और सबकुछ खो जाएगा। वह जो जड़ों को सींचता है, उसे फल और फूल का आनंद मिलता है।
वे मानते हैं कि जब हमारा लक्ष्य एक होता है, तब हम उन सभी को एक ही समय में हासिल कर पाते हैं, लेकिन हमारा प्रयास जब सबको एक साथ हासिल करने का होता है, तो सबके विफल होने की आशंका रहती है। हम जब जड़ों की, सिर्फ जड़ों की देखभाल करते हैं, तब पूरा पौधा फल – फूल जाता है।~ Kabir Das Ke Dohe
दोहा – 13
दोष पराया देखकर, चले हसंत हसंत ।
अपना याद न आवई, जाका आदि न अंत ॥
हिंदी अर्थ: तुम दूसरों की कमियों पर हँसते हो और अपनी याद नहीं रखते, जिनकी कोई सीमा नहीं है। दूसरों की गलतियाँ निकालना और उन पर टिप्पणी करना न केवल आसान होता है , बल्कि उनके समाधान सुझा देना भी सरल होता है।
अपने अंदर की कमी का पता लगाना और देखना न केवल कठिन होता है, बल्कि उनमें सुधार भी कठिन होता है। हमारे अंदर जो अनुचित है, उसकी कोई सीमा नहीं होती। दूसरों की कमी का मजा उठाने की बजाय यहीं से शुरुआत क्यों न करें।~ Kabir Das Ke Dohe
दोहा – 14
हीरा पाया पारखी, घन मह दिन्हा आन ।
चोट सही फुटा नहीं, तब पाई पहचान ॥
हिंदी अर्थ: हीरे की पहचान तब होती है, जब उस पर हथौड़े से चोट की जाती है। चोट करने पर जब वह नहीं टूटता, तभी पता चलता है कि वह हीरा है।~ Kabir Das Ke Dohe
दोहा – 15
सूरा के मैदान में, कायर फंदा आय ।
ना भाजै न लडि़ सकै, मन – ही – मन पछिताय ॥
हिंदी अर्थ: बहादुरी के मैदान में कायर व्यक्ति फँसकर रह जाता है। वह न तो भाग पाता है, न ही लड़ पाता है, और इस तरह से वह मन – ही – मन में पछताता रहता है।~ Kabir Das Ke Dohe
दोहा – 16
साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहि ।
धन का भूखा जो फिरे, सो तो साधु नाहि ॥
हिंदी अर्थ: बुद्धिमान व्यक्ति धन का नहीं, प्रसिद्धि का भूखा होता है। जो सिर्फ धन की चाह रखते हैं, वे बुद्धिमान नहीं होते।~ Kabir Das Ke Dohe
दोहा – 17
आषा तजि माया तजे, मोह तजै अरु मान ।
हरष शोक निंदा तजै कहै कबीर सन्त जान ॥
हिंदी अर्थ: न कोई आकांक्षा, न मोह, न ही घमंड। न कोई जश्न, न निंदा, बुद्धिमान की दशा ऐसी ही होती है।~ Kabir Das Ke Dohe
दोहा – 18
चर्चा करुं तब चौहटे, ज्ञान करो तब दाए ।
ध्यान धरो तब एकिला, और न दुजा कोय ॥
हिंदी अर्थ: चर्चा चार लोगों से होती है, ज्ञान के लिए दो लोग चाहिए, लेकिन सोचने और फैसला लेने का काम स्वयं करना पड़ता है।~ Kabir Das Ke Dohe
दोहा – 19
कबीर तेई पीर है, जे जानै पर पीर ।
जे पर पीर न जानही, ते काफिर बे पीर ॥
हिंदी अर्थ: बुद्धिमान वह है, जो दूसरों की पीड़ा को समझता है, जो नहीं समझता, बुद्धिमान नहीं है।~ Kabir Das Ke Dohe
दोहा – 20
जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ, गहिरे पानी पैठ ।
मैं बपुरा बूड़न डरा, रहा किनारे बैठ ॥
हिंदी अर्थ: आपको धन चाहिए, जो गहरे पानी में ही मिल सकता है, मैं तो डर से किनारे पर ही बैठा रहा। हमें मोती गहराई में मिलते हैं और सीप तट पर मिलता है। ज्ञान तभी मिलता है, जब हम उसकी गहराई में डूब जाते हैं। काम पहचान का स्रोत तभी बनता है, जब हम अपने आपको गहराई में डुबा लेते हैं।~ Kabir Das Ke Dohe
दोहा – 21
जो मन लागे एक सों, तो निरुवार जाय ।
तूरा दो मुख बाजता, घना तमाचा खाय ॥
हिंदी अर्थ: एक पर ध्यान केंद्रित करने से निर्णय सुनिश्चत हो जाते हैं, दो मुँहा ढोल तो बस पिटता रह जाता है। ~ Kabir Das Ji Ke Dohe Arth Sahit
दोहा – 22
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय ।
बिन पानी साबुन बिना, निरमल करै सुभाय ॥
हिंदी अर्थ: आलोचक की संगत में रहिए, जो पानी या साबुन के बिना भी आपको स्वच्छ कर देता है।~ Kabir Das Ji Ke Dohe Arth Sahit
दोहा – 23
कबीर निंदक मर गया, अब क्या कहिए जाए ।
ऐसा कोई न मिले, बीड़ा ले उठाए ॥
हिंदी अर्थ: आलोचक की मृत्य हो गई, अब क्या कहा जाए? ऐसा कोई नहीं बचा, जो मुझमें सुधार की जिम्मेदारी उठा सके।~ Kabir Das Ji Ke Dohe Arth Sahit
दोहा – 24
कबीर चिंता क्या करे, चिंता सों क्या होय ।
चिंता तो हरि ही करे, चिंता करो न कोय ॥
हिंदी अर्थ: चिंता मत करो, क्योंकि चिंता करने से वैसे भी क्या हो जाता है? तुम अपनी चिंता मत करो, यह काम संसार को करने दो।~ Kabir Das Ji Ke Dohe Arth Sahit
दोहा – 25
भीतर तो भेदा नहीं, बाहर कथै अनेक ।
जो पै भीतर लखि परे, भीतर बाहिर एक ॥
हिंदी अर्थ: आप जो बाहर है, उसकी बात करते हैं, जो अंदर रहता है, उसपर विचार नहीं करते। यदि आप अपने अंदर से जुड़ जाएँ तो एकता अंदर और बाहर की स्थापित हो जाएगी।~ Kabir Das Ji Ke Dohe Arth Sahit