विषय सूची
दोहा – 26
साकट का मुख बिंब है, निकसत वचन भुवंग ।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापै अंग ॥
हिंदी अर्थ: मूल्यहीन व्यक्ति का मुख साँप के समान है, जो केवल जहर उगलेगा; इसका इलाज केवल चुप्पी है।~ Kabir Das Ji Ke Dohe Arth Sahit
दोहा – 27
रात गँवाई सोए कर, दिवस गँवायो खाय ।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय ॥
हिंदी अर्थ: रात सोकर गुजारी, दिन खाते – पीते बेकार गया; हीरे की तरह अनमोल जीवन के साथ, कौडि़यों के मूल्य की तरह बरताव किया।~ Kabir Das Ji Ke Dohe Arth Sahit
दोहा – 28
सूरा सोइ सराहिए, लडै धनी के हेत ।
पुरजा पुरजा है पडे, तऊ न छाडै खेत ॥
हिंदी अर्थ: वह शूरवीर है, जो सिद्धांतों के लिए संघर्ष करता है, मरने के लिए तैयार रहता है, युद्ध भूमि से कभी नहीं भागता है।~ Kabir Das Ji Ke Dohe Arth Sahit
दोहा – 29
सूर चला संग्राम को, कबहुं न देवे पीठ ।
आगे चले पाछे फिरे, ताको मुख नाहि दिठ ॥
हिंदी अर्थ: शूरवीर कभी हार नहीं मानता। जो ऐसा करता है, उसे प्रश्रय नहीं देना चाहिए।~ Kabir Das Ji Ke Dohe Arth Sahit
दोहा – 30
खेत न छोडै़ सूरमा, जूझै दो दल माहि ।
आसा जीवन – मरन की मन में राखै नाहि ॥
हिंदी अर्थ: शूरवीर युद्ध भूमि से कभी नहीं भागता है, मृत्यु की आशंका या जीवन की संभावना से विचलित नहीं होता है।~ Kabir Das Ji Ke Dohe Arth Sahit
दोहा – 31
सिर सांटै मा खेल है, सो सूरन का काम ।
पहिले मरना आग में, पीछै कहना राम ॥
हिंदी अर्थ: शूरवीर अपने कर्म की बाजी लगा देते हैं , पहले आग में कूदते हैं , फिर भगवान् को याद करते हैं। ~ Kabir Ke Dohe in Hindi
दोहा – 32
धन रहै न जोबन रहै, रहै न गाँव न ठाव ।
कबीर जग में जसै रहै, करदे किसी का काम ॥
हिंदी अर्थ: धन, जीवन और आर्थिक लाभ हमेशा के लिए नहीं रहते, ख्याति हमेशा बनी रहती है और दूसरों को लाभ पहुँचाती है। ~ Kabir Ke Dohe in Hindi
दोहा – 33
पंडित और मसालची, दोनों सूझत नांहि ।
औरन को करै चाँदना, आप अँधेरे माहि ॥
हिंदी अर्थ: ज्ञानी और मशाल दोनों समझ नहीं पाते, वे दूसरों को भले ही रोशनी दें , लेकिन स्वयं अँधेरे में ही रहते हैं। ~ Kabir Ke Dohe in Hindi
दोहा – 34
कबीर पढ़ना दूर कर, अति पढ़ना संसार ।
पीर न अपजै जीव की, क्यों पावै करतार ॥
हिंदी अर्थ: किताबें पढ़ने और बौद्धिकता का दिखावा करने का कोई लाभ नहीं, जिसमें समानुभूति नहीं, वह ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता । ~ Kabir Ke Dohe in Hindi
दोहा – 35
तरा मंडल बैठि के, चाँद बड़ाई खाय ।
उदै भया जब सूर का, तब तारा छिपि जाय ॥
हिंदी अर्थ: चंद्रमा सिर्फ तारों के बीच प्रमुखता से दिखाई पड़ता है, किंतु जैसे ही सूर्य निकलता है, सब छिप जाते हैं।~ Kabir Ke Dohe in Hindi
दोहा – 36
रन जंग बाजा बाजिया, सूरा आए धाय ।
पूरा सो तो लड़त है, कायर भागे जाय ॥
हिंदी अर्थ: जैसे ही रणभेरी बजती है, वीर आगे आ जाते हैं, बहादुर लड़ते हैं, जबकि डरपोक भाग जाते हैं। ~ Kabir Das Dohe
दोहा – 37
जाति न पूछो साधु की, पूछ लिजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ॥
हिंदी अर्थ: संत की जाति नहीं पूछनी चाहिए, उसका ज्ञान पूछना चाहिए। ठीक उसी तरह से जैसे कि महत्त्व तलवार का होता है, उसकी म्यान का नहीं।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 38
कायर का घर फूस का, भभकी चहुं पछीत ।
सूरा के कुछ डर नहीं, गज गोरी की भीत ॥
हिंदी अर्थ: कायर व्यक्ति फूस की तरह होता है, जो पल भर में आग पकड़ लेता है, जबकि साहसी लोग निडर होते हैं, उग्र हाथियों से भी हार नहीं मानते।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 39
जब घट प्रेम न संचरै, सो घट जानु मसान ।
जैसे खाल लुहार की, साँस लेत बिन प्रान ॥
हिंदी अर्थ: प्रेम के बिना शरीर किसी श्मशान के समान होता है, जैसे लुहार की धौंकनी, जो हवा खींचती और भरती है, लेकिन उसमें जीवन नहीं होता।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 40
हरि रस पीया जानिधे, उतरै नांहि खूमारि ।
मतवाला घुमत फिरे, नहि तो तन की सारि ॥
हिंदी अर्थ: आपकी तलाश तब सच्ची है, जब आप सदैव धुन में रहते हैं, मतवाला होकर घूमते रहिए, न किसी की परवाह कीजिए और न चिंता।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 41
मतवाला घुमत फिरै, रोम – रोम रस पूरे ।
छाड़ै आस सरीर की, देखे राम हजूर ॥
हिंदी अर्थ: वह शरीर और आत्मा से मतवाला होकर घूमता है, उस पर और किसी की नहीं, बस अपने लक्ष्य को पाने की धुन सवार है।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 42
तन मन जोबन जरि गया, बिरह अगिनी घाट लाग ।
बिरहिन जानै पीर को, क्या जानेगी आग ॥
हिंदी अर्थ: तन, मन और आत्मा आपकी अनुपस्थिति में जल गए, अपनी वेदना सिर्फ मैं जानता हूँ, कष्ट का कारण अब तक मालूम नहीं है।
किसी को उसके प्रेम के विषय से अलग कर दिया जाए तो विरह की अग्नि उसका तन, मन और उसकी आत्मा को जला देती है, जिससे एक ऐसी पीड़ा होती है, जिसे सिर्फ हम जानते हैं, आग को यह पता नहीं चलता कि उसने क्या किया और किसे जलाया।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 43
बिरह बड़ो बैरी भयो, हिरदा धरै न धीर ।
सूरत सनेही न मिले, मिटै न मन की पीर ॥
हिंदी अर्थ: बिरह ने मेरे हृदय को अपरिपूर्ण बना दिया है, तुम से मिले बिना ओ मेरी प्रिया, मेरी पीड़ा बनी हुई है।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 44
अंखियन तो झाईं परी, पंथ निहार निहार ।
जिभ्या तो छाला पड़या, नाम पुकार पुकार ॥
हिंदी अर्थ: तुम्हारी प्रतीक्षा करते – करते आँखें पथरा गईं, तुम्हारा नाम ले – लेकर जीभ पर छाले पड़ गए।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 45
लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल ।
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ॥
हिंदी अर्थ: मैं जिसकी इच्छा रखती हूँ, उसका ऐश्वर्य कुछ ऐसा है कि वह मुझे हर जगह दिखाई देता है, हम जब मिलते हैं तो चाहनेवाला और चाहा गया दोनों ही एक हो जाते हैं।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 46
कबीर प्याला प्रेम का, अंतर लिया लगाय ।
रोम – रोम में रमि रहा, और अमल क्या खाय ॥
हिंदी अर्थ: कबीर, अब मैं प्रेम का प्याला पी रही हूँ, इसका नशा मुझ पर सवार हो गया है, मुझे और किसी की आवश्यकता नहीं है। ~ Kabir Ji Ke Dohe
दोहा – 47
नैना अंतर आव तूं, नैन झापि तूहि लेव ।
मैं न देखूँ और को, न तोहे देखन दूँ ॥
हिंदी अर्थ: तुम्हारे से लिए मेरा प्रेम ऐसा है कि मैं तुम्हें अपनी आँखों में बसा लूँगा और फिर उन्हें बंद कर लूँगा। न मैं स्वयं किसी और को देखूँगा, न तुम्हें देखने दूँगा। ~ Kabir Ji Ke Dohe
दोहा – 48
कबीर रेख सींदूर अरु, काजर दिया न जाय ।
नैनन प्रीतम रमि रहा, दुजा कहाँ समाय ॥
हिंदी अर्थ: सिंदूर की रेखा केवल एक के लिए होती है और आँखों का काजल भी। आँखों में भी केवल मेरा प्रेमी बसा है, और किसी के लिए कोई स्थान नहीं।~ Kabir Ji Ke Dohe
दोहा – 49
कबीर सीप समुद्र की, रटै पियास पियास ।
और बूँद को न गहे, स्वाति बूँद की आस ॥
हिंदी अर्थ: सीप में सिर्फ उस विशेष ओस की बूँद की प्यास होती है, पानी में घिरा होकर भी वह सिर्फ उस बूँद की प्रतीक्षा करता है।~ Kabir Ji Ke Dohe