विषय सूची
दोहा – 50
कबीर सीप समुद्र की खारा जल नहि लेय ।
पानी पीवै स्वाति का, सोभा सागर देव ॥
हिंदी अर्थ: समुद्र में रहकर भी सीप उसके खारे पानी को नहीं पीता है, वह आसमान से टपकनेवाली विशेष ओस की बूँद को ग्रहण करता है, फिर भी समुद्र की शोभा को ही बढ़ाता है।~ Kabir Ji Ke Dohe
दोहा – 51
एक जानि एकै समझ, एकै कै गुन गाय ।
एक निरख एके परख, एकै सो चित्त लाय ॥
हिंदी अर्थ: एक को जानिए, एक को समझिए, एक के ही गुण गाइए, एक को देखिए, एक को परखिए, एक से प्रेम कीजिए।~ Kabir Ji Ke Dohe
दोहा – 52
गुरु है गोविंद ते, मन में देखु विचार ।
हरि सिरजे ते वार है, गुरु सिरजे ते पार ॥
हिंदी अर्थ: आप जब वास्तव में आत्ममंथन करते हैं, तब पाते हैं कि गुरु गोविंद से ऊपर है। जिसे भगवान् ने बनाया है, वह इस जीवन को पार करता है। जिसे गुरु ने बनाया है, वह अगले को पार कर जाता है। ~ Kabir Das Dohe
दोहा – 53
जाके सिर गुरु ज्ञान है, सोई तरत भव माहि ।
गुरु बिन जानो जंतु को, कबहु मुक्ति सुख नाहि ॥
हिंदी अर्थ: जिसे गुरु के ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त है, वह इस संसार से तर जाता है। गुरु के ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं मिल पाती है। ~ Kabir Das Dohe
दोहा – 54
तीरथ न्हाये एक फल, साधु मिले फल चार ।
सतगुरु मिलै अनेक फल, कहै कबीर विचार ॥
हिंदी अर्थ: एक तीर्थ यात्री में एक गुण होता है, संत में चार होते हैं। लेकिन गुरु में अनेक गुण होते हैं।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 55
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
सीस दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ॥
हिंदी अर्थ: यह शरीर जहरीली लता के समान है, जबकि गुरु अमृत की खान है। गुरु के लिए सबसे बड़ा बलिदान भी किया जा सकता है।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 56
शब्दै मारा खैचिं कर, तब हम पाया ज्ञानं ।
लगी चोट जो शब्द की, रही कलेजे खान ॥
हिंदी अर्थ: तुमने मुझे अपने शब्दों का चाबुक मारा, ताकि उनके माध्यम से मुझे ज्ञान मिले। हे गुरु ! आपके बहुमूल्य शब्दों ने मेरे हृदय को बेध दिया है।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 57
गुरु बिन ज्ञान न ऊपजै, गुरु बिन मिलैन मोष ।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटै न दोष ॥
हिंदी अर्थ: न तो ज्ञान का सृजन किया जा सकता है, न ही मुक्ति का, गुरु के बिना, न तो आप सत्य को देख पाते हैं, न ही अवगुणों को। कोच बहुमुखी होता है।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 58
गुरु मिला तब जानिए, मिटे मोह तन ताप ।
हरष शोक व्यापै नहि, तब गुरु आपै आप ॥
हिंदी अर्थ: जब शरीर और आत्मा के प्रति मोह और चिंता दूर हो जाती है, जब आप सुख और दुःख से उदासीन रहते हैं, तब आप जान जाते हैं कि आप गुरु जितने ही अच्छे हैं।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 59
गुरुवा तो घर घर फिरै, दीक्षा हमरी लेहु ।
कै बूड़ौ के उबरौ, टका पर्दनी देहु ॥
हिंदी अर्थ: नकली गुरुओं की भरमार है, सब हमें अपना शिष्य बनाना चाहते हैं, उन्हें परवाह नहीं होती कि आप डूबें या उसके बाद तैरने लगें, उन्हें बस दान और उपहार से ही मतलब होता है।~ Kabir Das Dohe
दोहा – 60
निज मन सों नीचा किया, चरण कमल की ठौर ।
कहैं कबीर गुरुदेव बिन, नजर न आवै और ॥
हिंदी अर्थ: विनम्र शिक्षार्थी वह है, जो अपने गुरु के प्रति समर्पित होता है, जो किसी और से भ्रमित नहीं होता है। एक अच्छे शिक्षार्थी में दो गुण होते हैं। एक, उसे विनम्र होना चाहिए और दो, उसे अपने शिक्षक पर विश्वास होना चाहिए । ~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 61
तन मन दिया जु क्या हुआ, निज मन दिया न जाय ।
कहै कबीर ता दास सों, कैसे मन पतियाय ॥
हिंदी अर्थ: मन को समर्पित किए बिना गुरु के प्रति समर्पण का दिखावा करनेवाला शिक्षार्थी कभी गुरु का स्नेह प्राप्त नहीं कर पाएगा।
एक सच्चा शिक्षार्थी अपना तन – मन समर्पित कर देता है। अपने आपको समर्पित करने का अर्थ है, किसी व्यक्ति या वस्तु के प्रति एक प्रतिज्ञा या वादा या एक दायित्व। ~ Sant Kabir ke Dohe
दोहा – 62
गुरु बेचारा क्या करें, हिरदा भया कठोर ।
नौ नेजा पानी चढ़ा, पथर भीजी कोर ॥
हिंदी अर्थ: पत्थर – दिलवाले के लिए कोच क्या कर सकता है? पत्थर पर छप्पन बार पानी गिराने से भी उसके मूल को गीला नहीं किया जा सकता है। ~ Sant Kabir ke Dohe
दोहा – 63
निंदक दूर न कीजिए, कीजै आदर मान ।
निरमल तन मन सब करै, बकै आन ही आन ॥
हिंदी अर्थ: आलोचना करनेवाले को अपने आप से दूर मत कीजिए, उसका आदर कीजिए। वह जो बोलता है, उससे आपको स्वच्छ कर देता है।~ Sant Kabir ke Dohe
दोहा – 64
जो तूं सेवक गुरुन का, निंदा की तज बान ।
निंदक नियरै आय जब, कर आदर सनमान ॥
हिंदी अर्थ: यदि आप सच्चे अर्थों में शिक्षार्थी हैं, तो निंदा करने की प्रवृत्ति को छोड़ दीजिए, जब कोई आलोचक आपके पास आए तो उसका सम्मान कीजिए।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 65
निंदा कीजै आपनी, बंदन सतगुरु रूप ।
औरन सों क्या काम है। देखो रंक न भूप ॥
हिंदी अर्थ: अपनी आलोचना करो और अपने गुरु की प्रशंसा करो। दूसरे मायने नहीं रखते, चाहे वह कोई राजा हो या रंक।~ Sant Kabir ke Dohe
दोहा – 66
कंचन को तजबो सहल, सहल त्रिया को नेह ।
निंदा केरो त्यागबो, बड़ा कठिन है येह ॥
हिंदी अर्थ: सोना और प्रेम को त्याग देना सरल है, लेकिन आलोचना करने की प्रवृत्ति को छोड़ना सरल नहीं होता है।~ Sant Kabir ke Dohe
दोहा – 67
साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय ॥
हिंदी अर्थ: भगवान्, मेरे विस्तृत परिवार के लिए पर्याप्त दीजिए, ताकि मैं भी भूखा न रहूँ, न ही मेरे अतिथि भूखे रह जाएँ।~ Sant Kabir ke Dohe
दोहा – 68
बहुत पसारा जनि करै, कर थोड़े की आस ।
बहुत पसारा जिन किया, तेई गए निरास ॥
हिंदी अर्थ: कुछ लोग अधिक की इच्छा रखते हैं, आपको इच्छा पर संयम रखना चाहिए, जिन्हें बहुत अधिक प्यास लगती है, वे अतृप्त ही रह जाते हैं।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit
दोहा – 69
आसन मारे कह भयो, मरी न मन की आस ।
तेली केरे बैल ज्यौ, घर ही कोस पचास ॥
हिंदी अर्थ: ध्यान, प्रार्थना और पूजा – पाठ से अधिक की इच्छा समाप्त नहीं होगी, जिस प्रकार तेल निकालने के लिए कोल्हू का बैल घूमता रहता है, आप भी गोल – गोल चक्कर लगाते रहेंगे। ~ Sant Kabir ke Dohe
दोहा – 70
पढ़ी गुनी पाठक भये, समुझाया संसार ।
आपन तो समुझै नहीं, वृथा गया अवतार ॥
हिंदी अर्थ: संसार को पढ़ाने और सिखाने का कोई लाभ नहीं होगा, अपने आपको न जानना जीवन बरबाद करने के समान है। ~ Sant Kabir ke Dohe