Bhagwan Shri Krishna Ke Management Funde from Bhagvad Gita

Krishna Teachings: Bhagwan Shri Krishna Ke Management Funde from Bhagvad Gita

Bhagwan Shri Krishna Ke Management Funde from Bhagvad Gita
Bhagwan Shri Krishna Ke Management Funde from Bhagvad Gita

Krishna Teachings – Bhagwan Shri Krishna Ke Management Funde from Bhagvad Gita: एक अच्छे लीडर को हर दिन कई महत्वपूर्ण फैसले लेने पढ़ते है।  कई महत्वपूर्ण लोगों से मिलना पढता है और बैक तो बैक मीटिंग में जाना होता है इसलिए इन सब चीजों को मैनेज करने के लिए भगवन कृष्णा से मैनेजमेंट के फंडे सीखने जरूरी है। तो आईये शुरू करते है बिना किसी देरी की काम की बात। 

1. व्यापक विजन

तीन स्टूडेंट्स थे।  तीनो से एक सवाल पूछा गया “आप पढ़ क्यों रहे हो ? पहला बोला मुझे परिवार का पेट पालना है दूसरे ने कहा में ये दिखाना चाहता हूँ कि मैं दुनिया का सबसे जीनियस स्टूडेंट हूँ।  तीसरे से कहा मैं पढ़कर एक बेहतर समाज और देश का निर्माण करना चाहता हूँ। 

Bhagwan Shri Krishna Ke Management Funde from Bhagvad Gita

तीनों एक ही काम कर रहे हैं, लेकिन तीनों के नजरिए में कितना फर्क है ? इसलिए भगवन श्री कृष्ण कहते है कि आप जो भी कर रहे हैं, उसे लेकर आपकी सोच और आपका विज़न व्यपक होना चाहिए यानी की आपका विज़न ब्रॉड होना चाहिए।     

2. वर्तमान पर फोकस

भगवन श्री कृष्ण कहते हैं कि जो भी आपका काम है, उसे पुरे निलिर्प्त भाव से करें। आपका जो वर्तमान काम है, उसे अपनी भविष्य की चिंताओं और अपेक्षाओं के बदले गिरवी रखकर करेंगे तो कभी भी अपना काम सही तरीके से नहीं कर पाएंगे।  अपनी ड्यूटी निभाने का सबसे अच्छा तरीका निष्काम कर्म ही है। 

3. पॉजिटिव ऐटिटूड

कृष्ण दो तरह की वर्क कल्चर की बात करते हैं।  एक है दैवीय और दुसरी आसुरी।  दैवीय कल्चर में जहाँ निडरता, आत्म नियंत्रण, दूसरे की गलतियां न ढूंढ़ना, शांत मन, सज्जनता शामिल होती हैं। वही आसुरी वर्क कल्चर में भ्रम, व्यक्तिगत इच्छाएं और नेगेटिविटी होती हैं।  भगवन श्री कृष्ण दैवीय कल्चर पर जोर देते हैं।

4. मोटिवेशन

कृष्ण खुद तो मोटिवेटेड रहते हैं और अपने संपर्क में आने वाले दूसरे लोगों को भी मोटिवेटेड रखते हैं।  समझाते हैं, ज्ञान देते हैं और जरुरत पढ़ने पर डांटते भी हैं।  एक अच्छे वक़्त की तरह उन्होंने युद्ध के दौरान दुखी हो रहे अर्जुन को अपना कर्म करने के लिए प्रेरित किया और उसमें कामयाबी पाई।

5 मन पर नियंत्रण

लालच, जलन क्रोध, फ्रस्ट्रेशन और शक करने की आदत लीडर बनने के रस्ते में सबसे बड़ी बाधाएँ हैं।  कुशल मैनेजमेंट के लिए इन चीजों से हर हाल में दूर रहना बेहद जरूरी हैं।  तभी उसकी मेन्टल हेल्थ दुरुस्त होगी।  गीता में भगवन श्री कृष्ण इस तरह के तमाम दुर्गुणों से हमेशा बचने का उपदेश दिया है। 

Bhagwan Shri Krishna Ke Management Funde from Bhagvad Gita

तो थे भगवन श्री कृष्ण के मैनेजमेंट फंडे। अब में आपको एक छोटी से कहानी सुनाता हूँ जो की बहुत ही प्रेरक है।  जिससे आप मोटीवेट होंगे और लोगों को समझाने के असरदार तरीके जान पाएंगे।  अगर आपको वीडियो पसंद आ रही है तो वीडियो को लाइक कर दे और चैनल को सब्सक्राइब कर ले ताकि आगे आने वाली सभी वीडियो से आप फायदा उठा सकें। 

Bhagwan Shri Krishna Ke Management Funde from Bhagvad Gita

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एक देश का राजा बहुत अच्छा था।  प्रजा उससे बहुत प्रसन्न रहती थी।  लेकिन राजा को पीने के लत लग गई।  वह शराब में बेसुध रहने लगा, जिससे राज-काज की व्यवस्था बिगड़ने लगी।  बात धीरे-धीरे फ़ैली, प्रजा भयभीत हो गई और सोचने लगी कि यदि पड़ोसी राजा ने कभी हमला कर दिया, तो सबको मार डालेगा और सारा धन लूटकर ले जायेगा। 

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संयोग से एक साधु बाबा घूमते – घूमते उस राज्य में आ गए।  वही उन्होंने अपना डेरा डाल दिया।  एक दिन राज्य के कुछ बड़े-बूढ़े उनके पास गए और अपनी समस्या बताई।  साधु ने सारी बात सुनकर कहा कि  अगर आप राजा को बचाना ही चाहते हो, तो मेरी एक विशाल सभा करवाओ।

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प्रजा ने मिलकर सभा का आयोजन किया।  उसमे कथा-कीर्तन के बाद साधु बाबा ने शराब का गुणगान करना शुरू किया और कहा शराब पीने वाला गीता में दी गई समदर्शन अवस्था को  प्राप्त कर  लेता  है।  वह कभी बूढ़ा भी नहीं होता।  उसके घर में कोई चोर चोरी भी नहीं कर सकता। 

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बात राजा तक भी पहुंची, तो उसने साधु बाबा को महल में बुलवा लिया और वही उनके ठहरने की व्यवस्था करवाई।  फिर उसने कहा महाराज मुझे भी कुछ उपदेश दें, ताकि मेरा जीवन धन्य हो जाए।  साधु बाबा बोले राजन, यह कलयुग है , इसमें हरिनाम बहुत जरूरी है, इसलिए रोज आप हरीनाम जपा करो। 

फिर एक थैली में कुछ लकड़ी के मनके और गिलास देते हुए कहा इसे मेने सिद्ध कर दिया है, अब शराब इसी गिलास में पीना।  बस एक मनका रोज गिलास में डालते रहना।  लेकिन ध्यान रखना की जो मनके इसमें डालो, उन्हें कभी वापस मत निकालना। 

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राजा रोज एक मनका डालता और उसी गिलास में शराब पीता। धीरे धीरे गिलाश मानकों से भरने लगा।   शराब कम होने लगी,  तो नशा भी कम होने लगा और कम नशे में होश ज्यादा रहने लग। 

एक दिन राजा न देखा कि उसके मंत्री भी शराब पीकर पढ़े रहते हैं , किसी को राज्य का ध्यान नहीं।  यह देखकर वह गुप्त रूप से राज्य का भ्रमण पर निकला।  पता लगा की प्रजा उससे प्रसन्न तो है परन्तु  पीने के आदत से डरी हुई है की कही पड़ोसी राज्य उनपर हमला न कर दे। 

राजा की आँखें खुल गई।  महल में वापस आकर उसने शराब न पीने का प्रण लिया और राज्य की हालत सुधारने में जुट गया।  राजा को ठीक हुआ देख, मंत्री भी संभल गए और राज्य का कार्यभार संभालने लगे। 

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फिर राजा साधु के पास गया और बोलै आपकी बड़ी कृपा है कि आपने मेरी शराब छुड़ा  दी।  परन्तु आपने जन सभा में यह क्यों कहा था की शराब पीने वाला समदर्शन अवस्था को प्राप्त करता है।  साधु ने हसते हुए कहा क्योंकि शराब में धुत व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि उसके आस-पास क्या हो रहा है।

उसका ध्यान तो शराब पीने में लगा होता है।  गीता का समदर्शन भी यही है।  शराब पीने वाला बूढ़ा भी नहीं होता, क्योंकि वह तो जवानी में ही मर जाता है।  शराब पीने वाले के घर चोर भी नहीं आते, क्योकी वह शराब पीने के लिए घर का सारा सामान पहले ही बेच चूका होता है।  जब घर में कुछ बचेगा ही नहीं तो चोर उसके घर में क्यों आएंगे। 

इस कहानी से हमें यही सिख मिलती है की दूसरों को समझाने का तरीका सिख कर मुश्किल से मुश्किल या यूँ कहे की असंभव से लगने वाले बात को भी सामने वाले को आसानी से समझा सकते है और यही लीडरशिप का गुरुमंत्र है।

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तो दोस्तों इस आर्टिकल (Krishna Teachings: Bhagwan Shri Krishna Ke Management Funde from Bhagvad Gita) में बस इतना ही आपको ये आर्टिकल कैसी लगी हमें कमेन्ट कर के जरूर बताये। अगर आप इस बुक का कम्पलीट वीडियो समरी देखना चाहते है तो ऊपर दिए लिंक से देख सकते है।

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