Top 100 Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit – कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे

विषय सूची

दोहा – 71

पढ़ी गुनी ब्राह्मण भये, कीर्ति भई संसार ।

वस्तू की तो समझ नहि, ज्युं खर चंदन भार ॥

हिंदी अर्थ: किताबों ने आपको विद्वान् बना दिया, ऐश्वर्य दिलाया, लेकिन ज्ञान नहीं दिया, आप उसी प्रकार अपने ज्ञान से अनभिज्ञ रहते हैं जैसे कि अपनी पीठ पर चंदन ढोनेवाला खच्चर। ~ Kabir Dohe in Hindi

दोहा – 72

जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु है मैं नाहि ।

कबीर नगरी एक में, दो राजा न समांहि ॥

हिंदी अर्थ: जब वहाँ मैं था, तब वहाँ कोई गुरु नहीं था। अब सिर्फ गुरु हैं, कोई मैं नहीं है। दोनों एक साथ नहीं रह सकते हैं। ~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

दोहा – 73

कबीर सोई सुरमा, मन सों माड़ै जुझ ।

पाँचो इंद्री पकडि़ के, दूरि करै सब दूझ ॥

हिंदी अर्थ: हे कबीर, बहादुर वह है, जो अपने मन से लड़ता है, अपनी इंद्रियों को वश में रखकर अपनी दुविधा को दूर करता है। हे कबीर, बहादुर वह है, जो पाँच इंद्रियों को वश में करता है, वह जो ऐसा नहीं कर पाता है, कभी भगवान् को प्राप्त नहीं कर सकेगा।~ Kabir Dohe in Hindi

दोहा – 74

सिर राखै सिर जात है, सिर काटै सिर सोय ।

जैसे बाती दिप की, कटि उजियारा होय ॥

हिंदी अर्थ: अहंकार से जीवन तबाह हो जाता है, इसे छोड़ने से जीवन बच जाता है। यह उसी प्रकार है, जिस प्रकार चिराग तभी रोशनी देता है, जब उसकी बाती को काटा – छाँटा जाता है।~ Kabir Dohe in Hindi

दोहा – 75

हरि गुन गावे हरषि के, हिरदय कपट न जाए ।

आपण तो समझे नहीं, औरहि ज्ञान सुनाए ॥

हिंदी अर्थ: वह जो भगवान् के गुण गाता है, जबकि उसके हृदय में कपट है, वह अपने आपको नहीं जानता, लेकिन संसार को शिक्षा देता है।~ Kabir Dohe in Hindi

दोहा – 76

जो हंसा मोती चुगै, कांकर क्यु पतियाय ।

कांकर माथा न नवै, मोती मिले तो खाए ॥

हिंदी अर्थ: हंस सिर्फ मोती चुगता है, पत्थर नहीं । वह जिसे मोती की आदत है, वह कभी पत्थर से समझौता नहीं करेगा।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

दोहा – 77

हंसा बगुला एक सा, मानसरोवर माहिं ।

बगा ढिंढोरे माछरी, हंसा मोती खाहिं ॥

हिंदी अर्थ: हंस और बगुला एक जैसे ही दिखते हैं। बगुला मछली पकड़ता है, जबकि हंस मोती।~ kabir ke dohe arth sahit

दोहा – 78

मेरा किया न कछु भया, तेरा कीया होय ।

तूं करता सबकुछ करै, करता और न कोय ॥

हिंदी अर्थ: ऐसा कुछ नहीं है, जिसे सिर्फ मैंने किया है, असली करनेवाले तो आप हैं। आपके ही माध्यम से सारे काम होते हैं।~ kabir ke dohe arth sahit

दोहा – 79

साधू सती औ सूरमा, कबहूँ न फेरे पीठ ।

तीनों निकसी बाहुरै, तिनका मुख नहि दीठ ॥

हिंदी अर्थ: साधु, सती और बहादुर पीछे नहीं हटते हैं और अगर वे ऐसा करते हैं, उन्हें सम्मान नहीं देना चाहिए। ~ Kabir Ke Dohe

दोहा – 80

साधू सती औ सूरमा, इन पटतर कोय नाहिं ।

अगम पंथ को पग धरै, गिरि तो कहाँ समाहि ॥

हिंदी अर्थ: साधू, सती और निडर की किसी से तुलना नहीं हो सकती है, वे कड़े रास्ते पर चलते हैं; उन्हें गिरने पर कहीं जाने का रास्ता नहीं होता है।~ Kabir Ke Dohe

दोहा – 81

ये तीनों उलटे बुरे, साधू सती औ सूर ।

जग में हांसी होयगी, मुख पर रहे न नूर ॥

हिंदी अर्थ: साधू, सती और निडर को गलती नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे मजाक का पात्र बनेंगे और अपनी महत्ता खो देंगे।~ Kabir Ke Dohe

दोहा – 82

कड़ी है धारा राम की, काचा टिकै न कोय ।

सिर सौपै सीधा लड़ै, सूरा कहिये सोय ॥

हिंदी अर्थ: सच्चाई का पथ मुश्किल है, नौसिखिए के लिए नहीं है। जो झुकता है, वह न्यायसंगत रूप से लड़ता है, वास्तव में बहादुर कहा जाता है।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

दोहा – 83

पर नारी का राचना, ज्यू लहसुन की खान ।

कोने बैठे खाइए, परगट होय निदान ॥

हिंदी अर्थ: दूसरे की स्त्री की अभिलाषा करना लहसुन खाने के समान है; अगर आप एक कोने में भी खाते हैं, तब भी महक फैल जाती है।~ Kabir Ke Dohe

दोहा – 84

पर नारी पैनी छुरी, विरला बांचै कोय ।

कबहू छेडि़ न देखिए, हंसि हंसि खावे रोय ॥

हिंदी अर्थ: दूसरे की स्त्री पैनी छुरी है, विरले ही आप सकुशल बचेंगे; कभी उस पर फिदा मत हो; आप हँसी और आँसू में बरबाद हो जाएँगे।~ Kabir Ke Dohe

दोहा – 85

जो कुछ किया सो तुम किया, मैं कुछ किया नांहि ।

कहूँ कही जो मैं किया, तुम ही थे मुझ मांहि ॥

हिंदी अर्थ: जो कुछ भी हासिल हुआ, तुमने किया — मैंने नहीं; अगर मैं कहूँ कि मैंने ही किया, तब भी मुझमे तुम्हीं थे।~ Kabir Ke Dohe

दोहा – 86

हम जाए तो भी मुआ, हम भी चालनहार ।

हमरे पीछे पूंगरा, तिन भी बाँधा भार ॥

हिंदी अर्थ: हमारे निर्माता जा चुके हैं, इसलिए हमें भी जाना होगा, हमारी अगली पंक्ति के लोग भी बोरिया – बिस्तर बाँधकर तैयार हो रहे हैं।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

दोहा – 87

साथी हमरे चलि गए, हम भी चालनहार ।

कागद में बाकी रही, ताते लागी बार ॥

हिंदी अर्थ: हमारे साथी जा चुके हैं, इसलिए हमें भी जाना होगा, थोड़ा – बहुत कुछ करना बाकी रह गया है; बस इसीलिए देरी हो रही है।~ Kabir Ke Dohe

दोहा – 88

आए हैं तो जाएँगे, राजा रंक फकीर ।

एक सिंघासन चढि़ चले, एक बाँधे जात जंजीर ॥

हिंदी अर्थ:  जो आए हैं, एक दिन उन्हें जाना होगा, चाहे वे राजा हों या रंक या फकीर। कुछ गद्दी पर चढ़कर जाएँगे और कुछ बेडि़यों में जकड़े हुए।~ Kabir Ke Dohe

दोहा – 89

कबीर साईं मुझको, सूखी रोटी देय ।

चूपड़ी माँगत मैं डरू, मत रूखी छिन लेय ॥

हिंदी अर्थ: हे भगवान्, मैं केवल सूखी रोटी का एक टुकड़ा चाहता हूँ, क्योंकि मुझे डर है, अगर मैं मक्खन लगी रोटी के लिए पूछता हूँ, तो मैं सूखी रोटी भी गँवा सकता हूँ।~ Kabir Ke Dohe

दोहा – 90

अंधे मिलि हाथी छुआ, अपने अपने ज्ञान ।

अपनी – अपनी सब कहें, किसको दीजे का ॥

हिंदी अर्थ: अंधों ने हाथी को छुआ, और सभी ने अपना – अपना ज्ञान प्रस्तुत किया। हर किसी के पास अपनी अलग राय है, तो आप किसका विश्वास करें।~ Kabir Ke Dohe

दोहा – 91

चोर भरोसें साहु के, लाया वस्तु चोराय ।

पहिले बाँधों साहु को, चोर आप बंधि जाय ॥

हिंदी अर्थ: अपने संरक्षक के द्वारा प्रोत्साहित किए जाने पर चोर ने चोरी की, उसने क्या किया; पहले संरक्षक को पकडि़ए, चोर अपने आप पकड़ा जाएगा। ~ kabir das ke dohe arth sahit

दोहा – 92

भक्ति निसानी मुक्ति की, संत चढ़े सब धाय ।

जिन – जिन मन आलस किया, जनम जनम पछिताय ॥

हिंदी अर्थ: समर्पण निर्वाण से पहले आता है, संत इस पथ पर जाते हैं; आलसी कई जन्म पश्चात्ताप में बिताते हैं।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

दोहा – 94

लूटि सकै तो लूट ले, राम नाम की लूट ।

फिर पाछे पछिताहुगे, प्राण जाहिंगे छूट ॥

हिंदी अर्थ: अगर आप पकड़ सकते हैं, तो उसकी दानशीलता को पकडि़ए, जो ढेर सारा है, या फिर आप केवल पश्चात्ताप करते रहेंगे और एक दिन मर जाएँगे।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

दोहा – 95

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब ।

पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब्ब ॥

हिंदी अर्थ: जो कल करना है आज कर लें, जिसे आज करना है, उसे अभी कर लें। एक ही पल में प्रलय सारे अवसरों को दूर कर सकती है।~ kabir das ke dohe arth sahit

दोहा – 96

दुःख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय।

जो सुख में सुमिरन करै, दुःख काहे को होय ॥

हिंदी अर्थ: हर कोई उसे दुःख के समय में याद करता है, सुख में नहीं; यदि उसे सुख के समय में याद किया जाए, तो कोई दुःख होगा ही नहीं। ~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

दोहा – 97

एक ही बार परखिए, ना बा बारंबार ।

बालू तौहू किरकिरी, जो छाने सौ बार ॥

हिंदी अर्थ: एक ही बार मूल्यांकन करिए, बार – बार नहीं; बालू किरकिरा ही रहता है, चाहे आप इसे सौ बार छानिए। ~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

दोहा – 98

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय ।

औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय ॥

हिंदी अर्थ: ऐसी वाणी बोलिए, जो आपके मन को शांत करती है, जो दूसरों को शांत करती है और आपको शांत करती है। जिभ्या जिन बस में करी, तिन बस कियो जहान ~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

दोहा – 99

आया एक ही देश ते, उतरा एक ही घाट ।

बिच में दुविधा हो गई, हो गए बारह बाट ॥

हिंदी अर्थ: सभी एक जगह से आए और एक ही स्थल पर उतरे, इसके बाद भ्रम हुआ और हर एक ने अपना रास्ता लिया। ~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

दोहा – 100

रूखा – सूखा खाय के, ठंडा पानी पीव ।

देखि पराई चूपड़ी, मत ललचावै जीव ॥

हिंदी अर्थ: जो कुछ भी तुम्हारे पास है, उसे खाओ और ठंडा पानी पियो; दूसरों की घी चुपड़ी रोटी देखकर लालच मत करो। ~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

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दोहा – 101

आधी औ रूखी भली, सारी सोग संताप।

जो चाहेगा चूपड़ी, बहुत करेगा पाप ॥

हिंदी अर्थ: आधी सूखी रोटी बेहतर है; अधिक की खोज दुःख का कारण बनती है। जो मक्खन लगी रोटी के पीछे भागता है, वह कई पाप करेगा।~ Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit

Closing Remarks:

तो दोस्तों इस आर्टिकल (Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit) में बस इतना ही आपको ये आर्टिकल (Kabir ke Dohe Hindi Arth Sahit) कैसी लगी हमें कमेन्ट कर के जरूर बताये।

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