Vidur Niti Saar full in Hindi

Vidur Niti Vidur Niti Saar full in Hindi

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महाभारत के एक पात्र हैं नीतिज्ञ विदुर वे अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म-अधर्म, नीति-अनीति का सम्पूर्ण ज्ञान रखते हैं। महाभारत में विदुर की स्थिति महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। विदुर अपने व्यक्तित्व में प्रेरणाप्रद और मानवीय व्यवहार रखते  हैं। इनका एक-एक शब्द महाभारत में राज्य, राजा और प्रजा का कुशल संचालन के लिए उपदेश भी देता है। महात्मा विदुर युद्ध टालने के लिए धृतराष्ट्र को अधर्म का साथ छोड़ने के लिए उपदेश करते हैं।लेकिन विदुर के उपदेश धृतराष्ट्र का हृदय परिवर्तन नहीं कर पाते और जिसका परिणाम महाभारत के युद्ध के रूप में सामने आता है। लेकिन इसके लिए हम विदुरजी की नीति को विफल नहीं ठहरा सकते। उनका प्रत्येक उपदेश काल की कसौटी पर भली-भाँति जाँचा-परखा गया है।

आइये शुरू करते है पहले उपदेश से

कार्य सिद्धि की दृष्टि से मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं, उत्तम, मध्यम, और अधम! जो कार्य को श्रम के डर से पूरा ही नहीं करते या प्रारम्भ ही नहीं करते, वे आलसी अधम कहलाते हैं। जो उत्साह में कार्य तो प्रारम्भ कर देते हैं, लेकिन श्रम के भय से अथवा फल की आशंका से कार्य को बीच में ही छोड़ देते हैं अथवा शिथिलतापूर्वक करते रहते हैं, वे मध्यम श्रेणी के और जो पुरुष उत्साहपूर्वक कार्य प्रारम्भ करते हैं और पूरी शक्ति से उसे सम्पन्न करते हैं, वे उत्तम पुरुष कहलाते हैं।

सुखी मनुष्य वही है, जो रोग रहित रहे, उस पर किसी का कोई ऋण न हो, उसे परदेस में न रहना पड़े, मेलजोल अच्छे लोगों के साथ हो। धर्मपूर्वक अपनी वृत्ति से जीविका चलाता हो और निडर रहता हो। यही मनुष्य के सुख के आधार हैं।

जो बात स्वयं को बुरी लगती हो, उसे दूसरे के लिए भी नहीं करना चाहिए, मूल रूप में यही धर्म है। इस सबके विपरीत जो कार्य किए जाते हैं, वे सभी अधर्म कहे जाते हैं।

जो व्यक्ति कभी अपने पराक्रम की डींग नहीं हांकता, संतुलित रहकर कभी उद्दंडता नहीं करता, समन्वय की बात करता है, क्रोधित होने पर भी न तो व्याकुल होता है, न कटुवचन बोलता है, बल्कि धीरज से काम लेता है, वह व्यक्ति सभी का प्रिय होता है।

अपना सुख तो सुख होता ही है उसमें प्रसन्न क्या होना! प्रश्न तो दूसरे के दुःख में हाथ बटाने का होता है। जो व्यक्ति दुखियों का सहायता करता है, दान देता है लेकिन बाद में कोई पश्चाताप नहीं करता, वह सज्जनों में सबसे बड़ा सदाचारी होता है। उसकी सब जगह प्रशंसा ही होती है।

वास्तव में मनुष्य जैसी संगति करता है, जिन लोगों के साथ रहता है, जैसे लोगों की सेवा करता है और जैसा वह होना चाहता है, वैसा ही हो जाता है। जिन विषयों से मन को सताया जाता है, उनसे मुक्ति मिलती है। यदि मनुष्य सभी ओर से निवृत्त हो जाए तो उसे दुख का अनुभव ही न हो।

वास्तव में व्यक्ति के लिए यही करणीय है कि वह बांट कर खाए, काम अधिक करे, सोए कम, मांगने पर अमित्र को भी दान देने में न हिचके, ऐसा व्यक्ति अनर्थ से सदा दूर ही रहता है। जो व्यक्ति अपने कर्म गुप्त रखता है चाहे हितकारी हो या अहितकारी, वह अपनी चतुरता के कारण सफल होता है।

मनुष्य को चाहिए कि वह जिसकी पराजय नहीं चाहता, उसके बिना पूछे भी उसके कल्याण के लिए, चाहे बात अच्छी लगने वाली हो या बुरी लगने वाली, कहने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करना चाहिए।

मछली बढ़िया खाने के पदार्थ से ढकी हुई, लोहे के काटे को, लोभ में पड़कर निगलना चाहती है, वह उसके परिणाम को भूल जाती है। फलस्वरूप शिकंजे में फंस जाती है। इसी प्रकार अपनी उन्नति चाहने वाला पुरुष यदि ग्रहण करने योग्य वस्तु से अधिक की अपेक्षा करता है या ग्रहण करता है तो वह उसके परिणाम से बच नहीं पाता।

निरर्थक बोलने वाले, पागल अथवा बकवास करने वाले बच्चे से भी उसी भांति तत्व की बात ग्रहण करनी चाहिए, जैसे पत्थर से सोना निकाला जाता है। जैसे पक्षी एक- एक दाना चुगता है, उसी प्रकार पुरुष को चाहिए कि वह भावपूर्ण वचनों सदवचनों का श्रवण करे।

जो गाय बड़ी कठिनाई से दूध देती है, वह बहुत क्लेश उठाती है और जो आसानी से दूध देती है, व सुखी रहती है, लोग उसे कष्ट नहीं देते। इसी प्रकार जो धातु बिना गर्म किए मुड़ जाती है, उसे आग में नहीं तपाया जाता है और जो लकड़ी स्वयं मुड़ जाती है, उसे कोई झुकाने का प्रयत्न नहीं करता। कहने का तात्पर्य यही है कि बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि वह शक्तिशाली के सामने झुक जाए, क्योंकि जो बलवान के सामने झुकता है वह मानो इन्द्र देवता को प्रणाम करता है।

Vidur Niti Saar full in Hindi: जो दूसरों के धन, रूप, पराक्रम, कुलीनता, सुख, सौभाग्य और सम्मान के प्रति ईर्ष्यालु होता है, वह मानो असाध्य रोग से पीड़ित होता है और इसका निदान किसी के पास नहीं होता।

बैर की आग जब एक बार शान्त हो जाती है उसे शान्त ही रहने देना चाहिए। जो व्यक्ति इस अग्नि को पनपने नहीं देता, गर्व नहीं करता उसमें किसी प्रकार की की हीनता की भावना नहीं विकसित होती, वह किसी प्रकार से विपत्ति का रोना भी नहीं रोता और इसका लाभ उठाकर अनुचित कार्य भी नहीं करता। ऐसा आदमी ही श्रेष्ठजन कहा जाता है। उसी का लोग सम्मान भी करते है।

यदि मनुष्य पहले इन्द्रियों सहित मन को अपना शत्रु मानकर जीत लेता है, तो फिर वह अपने मित्रों और शत्रुओं को भी जीतने की इच्छा करे तो उसे सफलता मिलती है। ऐसे पुरुष की लक्ष्मी भी सेवा करती है।

Vidur Niti full in Hindi: जो अपराध करता है, उसी की निन्दा होती है और सदैव उत्तम व्यवहार करने वाले की प्रशंसा होती है।

पंडित वही कहलाता है, जिसे वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो, उद्योग करने की क्षमता हो और धर्म में स्थित रहकर दुःख सहने की अपार शक्ति हो तथा जो पुरुषार्थ से मुंह न चुराने की प्रकृति वाला हो।

जो अच्छे कर्मों को सेवन करता है, बुराइयों से दूर रहता है, श्रद्धा भाव और आस्तिक होकर क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्यण्डता और अपने को पूज्य समझना, आदि भावों से पुरुषार्थ को भ्रष्ट नहीं होने देता, वही पंडित कहलाता है।

दूसरे लोग जिसके कर्तव्य, सलाह और पहले से किए हुए विचार को नहीं जानते, बल्कि काम पूरा होने पर ही जानते है, वही तो पंडित है और चतुर भी।

जो न चाहने वालों को चाहता है और चाहने वालों को त्याग देता है, अपने से अधिक बलवान के साथ बैर बांध लेता है, वह मूढ़ विचार का मनुष्य कहलाता है।

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जो व्यक्ति किसी कारण किसी काम को किए धर्म और अर्थ के विरुद्ध हो जाता है, न पाने योग्य वस्तु की कामना रखता है, उसे मूढ़ बुद्धि कहा जाता हैं।

उपदेश न देने योग्य व्यक्ति को जो उपदेश देता है, शून्य की उपासना करता है और अस्त्र का सहारा लेता है, उसे मूढ़ चित्त वाला व्यक्ति कहते हैं।

बहुत अधिक धन, विद्या, ऐश्वर्य आदि को पाकर भी जो इठलाता नहीं वह तो पंडित होता है। परन्तु स्वयं समर्थ होते हुए भी जो असमर्थ लोगों का ध्यान न रखते हुए, उन्हें बांटे बिना ही उत्तम भोजन करता है और उत्तम वस्त्र पहनता है, वह सबसे बड़ा क्रूर होता है।

एक बुद्धि ही तो होती है, जिसने व्यक्ति करने योग्य और न करने योग्य कामों का निश्चय करता है तथा साम, दान, दण्ड, भेद चार नीतियों से अपने शत्रु, मित्र अथवा उदासीन को वश में करता है।

इस संसार में क्षमा ही वशीकरण रूप है। भला सोचिए, क्षमा से क्या सिद्ध नहीं हो पाता। जिसके हाथ में शान्ति रूपी तलवार है, दुष्ट लोग उसका क्या कर लेंगे। और जहां तिनके नहीं होते वहां गिरी आग अपने आप बुझ जाती है।

जो व्यक्ति क्षमाशील नहीं होता, वह अपने साथ- साथ दूसरे को भी दोष का भागी बना लेता है, स्वयं भी कष्ट पाता है और उसके साथ रहने वाला हर व्यक्ति कष्ट पाता है।

दो प्रकार के पुरुष सूर्यमंडल को भेद कर उच्च गति पाते हैं। एक वे जो योग्य युक्त संन्यासी होते हैं। दूसरे वे जो युद्ध में वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होते हैं।

तीन लोग धन की अधिकारी नहीं माने जाते। स्त्री, पुत्र और दास। ये जो कुछ कमाते है, उसी के माने जाते हैं, जिसके ये अधीन होते हैं।

दूसरे के धन का हरण करने वाला, दूसरे की स्त्री से संसर्ग करने वाला और हितकारी मित्र का त्याग करने वाला – ये तीनों ही नाश के पात्र होते हैं।

काम, क्रोध और लोभ- आत्मा का नाश करने वाले तीन द्वार हैं। अतः इन तीनों को त्याग करना चाहिए।

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पिता- माता, अग्नि, आत्मा और गुरु की सेवा बड़े यत्न से करनी चाहिए। जो व्यक्ति देवता, पितर, मनुष्य, संन्यासी और अतिथि की शुद्ध हृदय से पूजा करता है और उन्हें संतुष्ट करता है, वह शुद्ध यश प्राप्त करता है।

जिस प्रकार समुद्र की सैर करने वाला मनुष्य, फटी नाव को छोड़ देता है, उसी प्रकार ज्ञानी पुरुष के लिए यह आवश्यक है कि वह उपदेश न देने वाले आचार्य, मन्त्रोच्चारण न करने वाले होता अथवा रक्षा करने में असमर्थ राजा, कटु वचन बोलने वाली स्त्री, गांव में रहने वाले ग्वाले और वन में रहने वाले नाई को त्याग देना चाहिए। इसके विपरीत सत्य, दान, कर्मण्यता, दूसरों में दोष देखने की प्रवृत्ति का अभाव, क्षमा और धैर्य का कभी त्याग नहीं करना चाहिए।

चोर असावधान पुरुष से, वैद्य रोगी से, मतवाली स्त्रियां कामियों से, पुरोहित यजमानों से, राजा झगड़ने वालो से और विद्वान पुरुष मूर्खों से अपनी जीविका चलाते हैं।

शिक्षा समाप्त हो जाने पर शिष्य आचार्य का, विवाह हो जाने पर पुत्र माता का, कामवासना की शान्ति हो जाने पर मनुष्य स्त्री का और काम निकल जाने पर व्यक्ति सहायता करने वाले का, नदी की धारा पार करने के बाद नाव का, रोग मुक्त होने के बाद वैद्य का अक्सर लोग तिरस्कार कर देते हैं।

जो व्यक्ति दूसरों से घृणा करता है, जिसे अपनी स्थिति पर कभी संतोष नहीं रहता, जो हमेशा क्रोध करता है और जो शंकित रहता है या दूसरों के भाग्य पर अपना जीवन निर्वाह करता है। ये छः व्यक्ति सदा दुःखी रहते हैं।

मित्रों से सद परामर्श, धर्मानुसार धन अर्जित करना, पुत्र के प्रति प्रेम, मैथुन में प्रवृत्ति, समय पर प्रिय वचन बोलना, अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति अपने वर्ग के लोगों में उन्नति और जन समाज में सम्मान, ये वे आठ लौकिक सुख है, जिन्हें पाकर प्रत्येक व्यक्ति हर्ष का अनुभव करता है।

व्यक्ति वही धुरंधर होता है जो समय आने पर या आपत्ति पड़ने पर दुःखी नहीं होता, बल्कि साहस से उद्योग करता हुआ सावधानीपूर्वक अपना समय गुजारता है। समय पर दुःख सहने से तो व्यक्ति के शत्रु भी पराजित हो जाते हैं।

जो व्यक्ति कष्ट नहीं सह पाता, वह कमजोर होता है, उसे दूसरे पे आश्रित रहना पड़ता है और अपमानित भी होना पड़ता है।

Vidur Niti full in Hindi: सत्य व्यक्ति का सबसे बड़ा आधार है। दूसरों को आदर देना मानवीयता का सबसे बड़ा लक्षण है। सत्कर्म करने में व्यक्ति को खुला तथा दुष्कर्म करने में संकोची व्यक्ति श्रेष्ठ कहलाता है।

अच्छे उपाय का उपयोग करके सावधानी से किया गया कोई कर्म यदि सफल न हो तो बुद्धिमान पुरुष को उसके लिए मन में ग्लानि नहीं करनी चाहिए। हां, यह अवश्य है कि किसी प्रयोजन से किए गए कर्म में पहले से प्रयोजन को समझ लेना चाहिए। तब पूरी तरह सोच- विचार कर काम करना चाहिए। जल्दबाजी से लिए गए निर्णय से सदैव असफलता का संदेह बना रहता है। इसलिए किसी काम को करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

यदि पेड़ से कच्चा फल तोड़ लिया जाए तो न केवल तोड़ने वाला रस प्राप्त नहीं करता बल्कि वृक्ष का बीज भी नष्ट हो जाता है समय पर पके हुए फल को ग्रहण करने से रस भी मिलता है साथ ही बीज भी।

मद तीन प्रकार के होते हैं, उच्च कुल का मद, धन और शक्ति का मद तथा विद्या का मद। घमण्डी पुरुषों के लिए तो ये मद है, जबकि सज्जनों के लिए ये धर्म के साधन है।

अच्छे वस्त्र वाला किसी भी सभा में अपना प्रभाव जमा लेता है, जिसके पास गौ है, वह मीठे स्वाद की आकांक्षा को जीत लेता है, सवारी से चलने वाला मार्ग को जीत लेता है, पर शीलवान पुरुष सब पर विजय पा लेता है।

दरिद्र के पेट में लक्कड़ भी पच जाता है, जबकि धनियों को प्रायः भोजन करने की शक्ति ही नहीं होती। इसी प्रकार एक दूसरा पक्ष भी है, अधम पुरुषों के सामने जीविका का भय होता है, मध्यम श्रेणी के पुरुष मृत्यु से डरते हैं, जबकि उत्तम पुरुषों को अपमान का ही महान भय होता है।

वचन रूपी वाण मुंह से निकल कर दूसरों के धर्म पर चोट करते है, उनसे आहत मनुष्य रात- दिन घुलता रहा है, इसीलिए विद्वान पुरुष के लिए कहा गया है कि वे दूसरों पर इसका प्रयोग न करें।

धैर्य धारण, मन का निग्रह और सत्य धर्म का पालन ही मनुष्य का पहला कर्तव्य है।

Vidur Niti Saar full in Hindi: पुरुष को चाहिए कि वह मन की सारी गांठें खोलकर, प्रिय और अप्रिय को अपनी आत्मा के समान समझे, दूसरों से अभद्र गाली सुनकर भी प्रत्युत्तर में उनसे भद्रता का ही व्यवहार करे, क्योंकि क्षमा कर देने वाले का रोका हुआ क्रोध सम्मुख गाली देने वाले को जला डालता है और उसके पुण्य भी ले लेता है।

जो न स्वयं किसी से जीता गया हो, जिसने किसी को जीतने की इच्छा भी न की हो, न किसी से उसका बैर हो और न कभी दूसरे को चोट पहुंचाने का प्रयास किया हो, निन्दा और प्रशंसा में जो समान भाव से आचरण करता हो, ऐसा व्यक्ति हर्ष और शोक से परे हो जाता है।

बुद्धि से मनुष्य अपने भय को दूर करता है, तप से महान पद प्राप्त करता है, गुरु सेवा से ज्ञान और योग से शांति को प्राप्त करता है।

अभिमान सबसे भयानक नाश का कारण होता है। कहा गया है, बुढ़ापा रूप का, आभा धैर्य का, काम लज्जा का, क्रोध लक्ष्मी का नाश करता है। इसी प्रकार अभिमान व्यक्ति का सर्वस्व नाश कर देता है।

Vidur Niti full in Hindi: यह संसार भी विविध रंग वाला और क्रिया व्यापार वाला है। इसमें कोई मनुष्य दान से प्रिय होता है, कोई प्रिय वचन बोलने से, कोई मंत्र और औषध बल से प्रिय होता हैं, किन्तु जो वास्तव में प्रिय है, वह तो सर्वप्रिय होता है।

जो वृद्धि भविष्य में नाश का कारण बने, उसे अधिक महत्व नहीं देना चाहिए और जिससे आगे चलकर अभ्युदय हो, ऐसे क्षय का भी आदर करना चाहिए।

जो अधिक गुणों से सम्पन्न और नम्र स्वभाव वाले हैं, वे प्राणियों पर अत्याचार होते देखकर चुप नहीं रह सकते। परन्तु जो लोग सदा दूसरों की निन्दा करने में ही लगे रहते हैं, दूसरों को दुःख देने और आपस में फूट डलवाने में गौरव का अनुभव करते है, ऐसे लोगों के तो दर्शन भी नहीं करने चाहिए न ऐसे लोगों से धन लेना चाहिए और न ही उन्हें धन देना चाहिए।

जो पुरुष अपने परिवार के लोगों का सत्कार करता है, बड़े- बूढ़ों की सेवा करता है, उसका सदा ही कल्याण होता है।

Vidur Neeti Full in Hindi
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अपने जाति भाइयों के साथ विरोध तो कभी करना ही नहीं चाहिए क्योंकि जाति भाई यदि सदाचारी होते हैं तो नाव को किनारे लगा देते हैं और यदि दुराचारी हो तो डुबो भी देते हैं।

Vidur Niti full in Hindi: बड़े- बड़े कुशल विद्वानों के द्वारा दिया गया ज्ञान का उपदेश भी व्यर्थ हो जाता है यदि उससे ज्ञान की प्राप्ति न हो या ज्ञान होने पर भी उन ज्ञान का उपयोग समय पर न किया जाए।

जो विद्वान पुरुष पापकर्मों को नहीं करता, वह सदा ही आगे बढ़ता है, परन्तु जो व्यक्ति पहले किए गए पापों के विषय में विचार न करके पुनः उन्हीं को करता है, वह बहुत भरे हुए कीचड़ के नरक में गिराया जाता है।

बुद्धिमान व्यक्ति को मंत्रभेद के इन छः द्वारों का जानना चाहिए और धन की रक्षा करने के लिए इन्हें सदा बंद रखना चाहिए। ये छः द्वार है- नशे का सेवन, निद्रा, आवश्यक बातों की जानकारी न रखना, अपने नेत्र, मुख आदि का विकार, दुष्ट मंत्रियों पर विश्वास और मूर्ख दूत पर भी भरोसा रखना। जो इन द्वारों के बारे में जानते हुए भी इन्हें बंद रखता है, वह अर्थ, धर्म और काम, क्रोध सेवन करते हुए भी शत्रुओं को वश में कर लेता है।

जो व्यक्ति किसी की सुनता नहीं, उससे कही हुई बात उसी प्रकार नष्ट हो जाती है, जिस प्रकार समुद्र में गिरी हुई वस्तु।

बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि वह स्वयं देखकर, दूसरों से सुनकर तथा अपनी बुद्धि विचार करके ही विद्वान से मित्रता करें। विनय भाव से अपयश का नास होता है, पराक्रम से अनर्थ का, क्षमा से क्रोध का, और सदाचार से कुलक्षण का अन्त हो जाता है।

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi

जो व्यक्ति विद्वानों की सेवा करता हो वैद्य, धार्मिक, सुन्दर मित्र रखने वाला तथा मीठा बोलने वाला हो, ऐसे व्यक्ति की तो सदैव ही रक्षा करनी चाहिए। मर्यादा का उल्लंघन करने वाला, कोमल स्वभाव वाला तथा लज्जाशील पुरुष सैकड़ों कुलीनों से बड़ा माना जाता है।

Vidur Niti full in Hindi: विद्वान पुरुष को अभिमानी, क्रोध, मूर्ख, साहसिक और धर्महीन पुरुष के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए। क्योंकि मित्र तो वही है, जो कृतज्ञ, धार्मिक, सत्य बोलने वाला, उदार, बहुत अधिक प्रेम करने वाला, मर्यादा में रहने वाला और सदा ही मित्रता को निभाने वाला हो।

जो व्यक्ति अन्याय के द्वारा नष्ट हुए धन को, अपनी बुद्धि से सोच विचार कर, सही नीति का निर्धारण करते हुए दुबारा वापिस लाने की क्षमता रखता है, वह वीर पुरुष कहलाता है।

जो पुरुष आगे आने वाले दुखों को समय रहते रोक सकता है, वर्तमान काल में अपने सभी कर्त्तव्यों का दृढ़ता से पालन करता है तथा भविष्य में उसे जो कार्य करने हैं, उनके लिए पहले से ही सचेत रहता है, ऐसा पुरुष कभी भी अर्थ से खाली नहीं होता। शुद्ध मन, वचन, कर्म से किए गए कार्य सदा ही कल्याणकारी होते हैं।

मंगलमय पदार्थों का स्पर्श, मन की इच्छाओं को रोकना, शास्त्र का अभ्यास, परिश्रम, सरलता और सत्पुरुषों का दर्शन करना, उनका सत्कार करना, ये सभी कार्य कल्याणकारी होते हैं।

बहुत अधिक श्रेष्ठ, अधिक दान देने वाला, अधिक वीर, व्रत नियमों का अधिक पालन करने वाला, तथा अपने ऊपर अधिक घमंड करने वाले पुरुष के पास लक्ष्मी नहीं रहती।

घने जंगल में, कठिन रास्ते पर, विपत्ति के समय, अपने समक्ष प्रहार करने के लिए उठे शस्त्र को देखकर भी आत्मबल से युक्त व्यक्ति को कभी भय नहीं लगता।

परिश्रम, संयम, धैर्य, सावधानी, स्मृति और सोच- विचार कर कार्य शुरू करना, ये ही उन्नति के साधन होते हैं।

शान्ति के द्वारा क्रोध को जीता जा सकता है। दुष्ट व्यक्ति सद्व्यवहार से वश में हो सकता है। कंजूस को दान से और झूठ को सत्य से जीता जा सकता है।

Vidur Niti full in Hindi: स्त्री, धूर्त, आलसी, डरपोक, क्रोधी, घमंडी, चोर, नास्तिक आदि का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।

जिस व्यक्ति ने धन दान करके मित्र को वश में कर लिया हो, शत्रु को युद्ध में जीत लिया हो, स्त्रियों को अच्छा भोजन कराकर वश में कर लिया हो, ऐसे पुरुष का जीवन सफल होता है।

जिन व्यक्ति की किसी में आसक्ति नहीं होती और श्रेष्ठ लोगों से आदर पाकर, अपनी शक्ति के अनुसार ही वह अर्थ साधन करता रहता है, ऐसे पुरुष को यश प्राप्त होता है। साधु- सन्त लोग उस पर प्रसन्न रहते हैं और उसके लिए मंगल कामना करते हैं।

सज्जन पुरुष, अधर्म से आई हुई सम्पत्ति को उसी प्रकार त्याग देता है, जिस प्रकार सांप अपनी केंचुली को उतार कर फेंक देता है और फिर सुख का अनुभव करता है।

भय, कामना और लोभ से कभी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए क्योंकि धर्म नित्य है तथा सुख- दुःख अनित्य है। जीव नित्य है पर इसका कारण अनित्य है, आपको अनित्य को छोड़कर नित्य को अपनाना चाहिए।

जिस प्रकार बिना फल-फूल वाले वृक्ष को पक्षी छोड़ देते हैं, उसी प्रकार मरे हुए व्यक्ति को उसके जाति भाई, परिवारजन, आदि चिता में रखकर आ जाते हैं। मरे हुए व्यक्ति के साथ तो केवल उसके भले-बुरे कर्म ही जाते हैं, जो उसने इस जीवन में किए होते हैं। इसीलिए मनुष्य को सदा धर्म के कार्यों में ही प्रवृत्त रहना चाहिए।

जो व्यक्ति बुद्धि, धर्म, विद्या और अवस्था में अपने से बड़े तथा श्रेष्ठ पुरुष में कर्तव्य और अकर्तव्य के विषय में प्रश्न करता है, वह कभी भी मोहमाया में नहीं पड़ता।

काम और भूख को अपने वश में रखे। नेत्रों के द्वारा हाथ पैरों की रक्षा, मन से नेत्र और कानों की, तथा सत्कर्मों से मन और वाणी की रक्षा करें।

जो व्यक्ति धनी होने पर भी दान न दे और दरिद्र होने पर भी कष्ट सहन न कर सके, ऐसे व्यक्ति को पानी में डुबाकर मार देना चाहिए।

एक लक्ष्मीवान गृहस्थ के घर में, कुल का बूढ़ा, संकट में पड़ा हुआ उच्चकुल का मनुष्य, धनहीन मित्र और निःसंतान बहन को सदा परिवारजन के समान पूरा आदर मिलना चाहिए।

बुद्धि कुलीनता, इन्द्रिय निग्रह, शास्त्र ज्ञान, पराक्रम, अधिक न बोलना, दान की प्रवृत्ति और कृतज्ञता भाव से आठ गुण किसी भी पुरुष को ख्याति दिलाने में सक्षम है।

विनाश के आठ अन्य लक्षण और भी है- ब्राह्मणों से द्वेष करना, उनके विरोध का पात्र बनना, ब्राह्मणों का धन हड़पना, उनकी हत्या, ब्राह्मण निन्दा और प्रशंसा सुनने की प्रवृत्ति, यज्ञ आदि कार्यों में उनका स्मरण न करना या अवहेलना करना तथा कुछ मांगने पर उनमें दोष निकालना से मूलतः त्याज्य कर्म है। बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि सदैव इनसे बचे और ब्राह्मणों का सम्मान करते हुए उनका आदर करे। ब्राह्मणों की अवहेलना स्वयं एक बड़ा पापकर्म है।

समर्थ व्यक्ति को तो सदा दूसरों को क्षमा करना चाहिए क्योंकि क्षमा से बड़ा दूसरा हितकारी और सम्पन्नता प्रदान करने वाला और कोई दूसरा उपाय नहीं है। जो शक्तिहीन है, उसे तो क्षमा करना ही चाहिए परन्तु जो शक्तिशाली है, उसे भी अपने धर्म का पालन करते हुए क्षमा को ही महत्व देना चाहिए।

जिस सुख का सेवन करने से अर्थ और धर्म की हानि नहीं होती है उसका तो पूर्ण रूप से सेवन करना ही उचित है। जो व्यक्ति सदा ही दुःखी रहते हैं, आलसी, ईश्वर में विश्वास न रखने वाले, अपनी इन्द्रियों को वश में न रखने वाले तथा किसी भी कार्य में उत्साह न दिखाने वाले हैं, in लोगों के यहां कभी भी लक्ष्मी निवास नहीं करती।

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