Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi

महाभारत एक पावन धर्मग्रंथ है (Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi)। इसका आधार अधर्म के साथ धर्म की लड़ाई पर टिका है। इसे पाँचवाँ वेद भी कहा जाता है। महाभारत में ही समाहित ‘श्रीमद् भगवद् गीता’ एवं ‘विदुर नीति’ इसके दो आधार-स्तम्भ हैं। एक में भगवान् श्रीकृष्ण अधर्म के विरुद्ध अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं तो दूसरे में महात्मा विदुर युद्ध टालने के लिए धृतराष्ट्र को अधर्म का साथ छोड़ने के लिए उपदेश करते हैं। यहाँ श्रीकृष्ण तो अपने उद्देश्य में सफल हो जाते हैं, लेकिन विदुर के उपदेश धृतराष्ट्र का हृदय परिवर्तन नहीं कर पाते और जिसका परिणाम महाभारत के युद्ध के रूप में सामने आता है। लेकिन इसके लिए हम विदुरजी की नीति को विफल नहीं ठहरा सकते। उनका प्रत्येक उपदेश अनुभूत है और काल की कसौटी पर भली-भाँति जाँचा-परखा गया है।

किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले यह आत्ममंथन करना चाहिए कि हम उसके लिये या वह हमारे लिये उपयुक्त है कि नहीं। अपनी शक्ति से अधिक का कार्य और कोई वस्तु पाने की कामना करना स्वयं के लिये ही कष्टदायी होता है।

आग में तपाकर सोने की, सदाचार से सज्जन की, व्यवहार से संत पुरुष की, संकट काल में योद्धा की, आर्थिक संकट में धीर की तथा घोर संकटकाल में मित्र और शत्रु की पहचान होती है।

‘यह ज़रूरी नहीं कि मूर्ख व्यक्ति दरिद्र हो और बुद्धिमान धनवान। अर्थात् बुद्धि का अमीरी या गरीबी से कोई सम्बंध नहीं है। जो ज्ञानी पुरुष लोक-परलोक की बारीकियों को समझते हैं; वे ही इस मर्म को समझ पाते हैं।’

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi: ‘जिस व्यक्ति को बुद्धिबल से मारा जाता है, उसके उपचार में योग्य चिकित्सक, औषधियाँ, जड़ी-बूटियाँ, यज्ञ, हवन, वेद मंत्र आदि सारे उपाय व्यर्थ हो जाते हैं।’

विष केवल उसके पीने वाले एक व्यक्ति की जान लेता है, शत्र भी एक अभीष्ट व्यक्ति की जान लेता है, लेकिन राजा कि एक ग़लत नीति राज्य और जनता के साथ-साथ राजा का भी सर्वनाश कर डालती है। ‘

विवकेशील और बुद्धिमान व्यक्ति सदैव ये चेष्ठा करते हैं कि वे यथाशक्ति कार्य करें और वे वैसा करते भी हैं तथा किसी वस्तु को तुच्छ समझकर उसकी उपेक्षा नहीं करते, वे ही सच्चे ज्ञानी हैं। ‘

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi: ‘पाँच लोग छाया कि तरह सदा आपके पीछे लगे रहते हैं। ये पाँच लोग हैं-मित्र, शत्रु, उदासीन, शरण देने वाले और शरणार्थी।’

गृहस्थ होकर अकर्मण्यता और संन्यासी होते हुए विषयासक्ति का प्रदर्शन करना ठीक नहीं है।

अल्पमात्र में धन होते हुए भी कीमती वस्तु को पाने की कामना और शक्तिहीन होते हुए भी क्रोध करना मनुष्य की देह के लिये कष्टदायक और काँटों के समान है।

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi

Vidur Niti in Hindi

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi

न केवल अपनी शक्ति का, बल्कि अपने स्वभाव का भी अवलोकन करना चाहिए। अनेक लोग क्रोध करने पर स्वतः ही काँपने लगते हैं तो अनेक लोग निराश होने पर मानसिक संताप का शिकार होते हैं। अतः इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे जिस मानसिक भाव का बोझ हमारी यह देह नहीं उठा पाती उसे अपने मन में ही न आने दें। कहने का तात्पर्य यह है कि जब हम कोई काम या कामना करते हैं तो उस समय हमें अपनी आर्थिक, मानसिक और सामाजिक स्थिति का भी अवलोकन करना चाहिए।

कभी-कभी गुस्से या प्रसन्नता के कारण हमारा रक्त प्रवाह तीव्र हो जाता है और हम अपने मूल स्वभाव के विपरीत कोई कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं और जिसका हमें बाद में दुख भी होता है। इसलिए विशेष अवसरों पर आत्ममुग्ध होने की बजाय आत्मचिंतन करते हुए कार्य करना चाहिए।

जो अपनी योग्यता से भली-भाँति परिचित हो और उसी के अनुसार कल्याणकारी कार्य करता हो, जिसमें दुख सहने की शक्ति हो, जो विपरीत स्थिति में भी धर्म-पथ से विमुख नहीं होता, ऐसा व्यक्ति ही सच्चा ज्ञानी कहलाता है।

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi: जो व्यक्ति क्रोध, अहंकार, दुष्कर्म, अति-उत्साह, स्वार्थ, उद्डंता इत्यादि दुर्गुणों की ओर आकर्षित नहीं होते, वे ही सच्चे ज्ञानी हैं।

दूसरे लोग जिसके कार्य, व्यवहार, गोपनीयता, सलाह और विचार को कार्य पूरा हो जाने के बाद ही जान पाते हैं, वही व्यक्ति ज्ञानी कहलाता है।

ज्ञानी लोग किसी भी विषय को शीघ समझ लेते हैं, लेकिन उसे धैर्यपूर्वक देर तक सुनते रहते हैं। किसी भी कार्य को कर्तव्य समझकर करते हैं, कामना समझकर नहीं और व्यर्थ किसी के विषय में बात नहीं करते।

जो व्यक्ति किसी भी कार्य-व्यवहार को निश्चयपूर्वक आरंभ करता है, उसे बीच में नहीं रोकता, समय को बरबाद नहीं करता तथा अपने मन को नियंत्रण में रखता है, वही ज्ञानी है।

जो व्यक्ति न तो सम्मान पाकर अहंकार करता है और न अपमान से पीडि़त होता है। जो जलाशय की भाँति सदैव क्षोभरहित और शांत रहता है, वही ज्ञानी है।

जो व्यक्ति बोलने की कला में निपुण हो, जिसकी वाणी लोगों को आकर्षित करे, जो किसी भी ग्रंथ की मूल बातों को शीघ ग्रहण करके बता सकता हो, जो तर्क-वितर्क में निपुण हो, वही ज्ञानी है।

जो व्यक्ति अपने हितैषियों को त्याग देता है तथा अपने शत्रुओं को गले लगाता है और जो अपने से शक्तिशाली लोगों से शत्रुता रखता है, उसे महामूर्ख कहते हैं।

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जो व्यक्ति अमीर होने पर भी दानशील न हो और गरीब होने पर जिसमें कष्ट सहने की शक्ति न हो, इन दोनों प्रकार के व्यक्तियों को गले में पत्थर बाँधकर पानी में डुबो देना चाहिए। अर्थात् इनका जीवन व्यर्थ है।

अल्प बुद्धि वाले, देरी से कार्य करने वाले, जल्दबाजी करने वाले और चाटुकार लोगों के साथ गुप्त विचार-विमर्श नहीं करना चाहिए। राजा को ऐसे लोगों को पहचानकर उनका परित्याग कर देना चाहिए।

संसार में उन्नति के अभिलाषी व्यक्तियों को नींद, ऊँघ, भय, क्रोध, आलस्य तथा देर से काम करने की आदत-इन छह दुर्गुणों को सदा के लिए त्याग देना चाहिए।

जो व्यक्ति अपने अनुकूल तथा दूसरों के विरुद्ध कार्यों को इस प्रकार करता है कि लोगों को उनकी भनक तक नहीं लगती। अपनी नीतियों को सार्वजनिक नहीं करता, इससे उसके सभी कार्य सफल होते हैं।

प्रत्येक कार्य बहुत सोच-विचार करके और उद्देश्य निश्चित करके करना चाहिए। जल्दबाजी में कोई भी कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए।

मनुष्य को चाहिए कि पहले कार्य का उद्देश्य तय करे, उसके परिणाम का आकलन करे, उससे अपनी उन्नति का विचार करे फिर उसे आरंभ करे।

काम को करने से पहले विचार करें कि उसे करने से क्या लाभ होगा तथा न करने से क्या हानि होगी? कार्य के परिणाम के बारे में विचार करके कार्य करें या न करें। लेकिन बिना विचारे कोई कार्य न करें।

धर्म की रक्षा सत्य से होती है, विद्या कि रक्षा अभ्यास से, सौंदर्य की रक्षा स्वच्छता से तथा कुल की रक्षा सदाचार से होती है।

ऊँचे या नीचे कुल से मनुष्य की पहचान नहीं हो सकती। मनुष्य की पहचान उसके सदाचार से होती है, भले ही वह नीचे कुल में ही क्यों न पैदा हुआ हो।

निर्धन लोग सदैव स्वादिष्ट भोजन करते हैं, क्योंकि उनकी भूख हर तरह के भोजन को स्वादिष्ट बना देती है। वहीं धनवान लोग भूख के अभाव में स्वादिष्ट व्यंजनों का भी मजा लेने से वंचित रह जाते हैं।

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi: यह मानव-शरीर रथ है, आत्मा (बुद्धि) इसका सारथी है, इंद्रियाँ इसके घोड़े हैं। जो व्यक्ति सावधानी, चतुराई और बुद्धिमानी से इनको वश में रखता है, वह श्रेष्ठ रथवान की भाँति संसार में सुखपूर्वक यात्रा करता है।

दुर्जनों की संगति के कारण निरपराध भी उन्हीं के समान दंड पाते हैं; जैसे सूखी लकडि़यों के साथ गीली भी जल जाती हैं। इसलिए दुर्जनों के साथ मैत्री नहीं करनी चाहिए।

मूर्ख लोग ज्ञानियों को बुरा-भला कहकर उन्हें दुख पहुँचाते हैं। इस पर भी ज्ञानीजन उन्हें माफ कर देते हैं। माफ करने वाला तो पाप से मुक्त हो जाता है और निंदक को पाप लगता है।

शब्द रूपी बाण सीधा दिल पर जाकर लगता है, जिससे पीडि़त व्यक्ति दिन-रात घुलता रहता है। इसलिए ज्ञानियों को चाहिए कि वे कटु वचन बोलने से बचें।

यज्ञ, अध्ययन, दान, तप, सत्य, क्षमा, दया और लोभ विमुखता-धर्म के ये आठ मार्ग बताए गए हैं। इन पर चलने वाला धर्मात्मा कहलाता है।

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi

Mahatma Vidur Niti

अच्छाई में बुराई देखनेवाला, उपहास उड़ाने वाला, कड़वा बोलने वाला, अत्याचारी, अन्यायी तथा कुटिल पुरुष पाप कर्मों में लिप्त रहता है और शीघ ही मुसीबतों से घिर जाता है।

हर दिन ऐसा कार्य करें कि हर रात सुख से कटे। बचपन में ऐसे कार्य करें कि वृद्धावस्था सुख से कटे और जीवन भर ऐसे कार्य करें कि मरने के बाद भी सुख मिले।

पच जाने पर भोजन की, यौवन बेदाग निकल जाने पर त्री की, युद्ध जीत लेनेवाले योद्धा कि तथा तत्त्वज्ञान प्राप्त कर लेने पर तपस्वी की प्रशंसा होती है।

कपड़े को जिस रंग में रँगा जाए, उस पर वैसा ही रंग चढ़ जाता है, इसी प्रकार सज्जन के साथ रहने पर सज्जनता, चोर के साथ रहने पर चोरी तथा तपस्वी के साथ रहने पर तपश्चर्या का रंग चढ़ जाता है।

जिस व्यक्ति को अपने आप पर भरोसा् नहीं होता, वह दूसरों का भी भरोसा नहीं करता, इसलिए कोई भी उसका मित्र नहीं होता। ऐसा व्यक्ति अधम पुरुष कहलाता है।

Vidur Niti full in Hindi

अकेला वृक्ष चाहे कितना ही बड़ा और मजबूत हो, आँधी उसे जड़ से उखाड़कर धराशायी कर सकती है। वहीं जो वृक्ष समूह में होते हैं; वे मिलजुलकर बड़ी-बड़ी आँधियों को झेल जाते हैं।

अन्याय का तक्षण विरोध करना चाहिए तथा बल का दमन दृढ़तापूर्वक करना चाहिए। अन्याय से अर्जित धन ज़्यादा समय तक नहीं ठहरता, जबकि न्याय द्वारा अर्जित धन कई पीढि़यों तक चलता है।

जो कार्य अपने एवं सबके लिए लाभकारी और सुखद हो केवल वही करना चाहिए। इससे मनुष्य को चारों पुरुषार्थों-धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

बुरे लोगों की रुचि दूसरों के गुणों से ज़्यादा उनके दुर्गुणों के बारे में जानने में होती है।

जो व्यक्ति भरोसे के लायक नहीं है, उस पर तो भरोसा न ही करें, लेकिन जो बहुत भरोसेमंद है, उस पर भी अंधे होकर भरोसा न करें, क्योंकि जब ऐसे लोग भरोसा तोड़ते हैं तो बड़ा अनर्थ होता है।

जो राजा बेकार में न तो खुश होता है, न किसी पर कुद्ध होता है, जो कार्य को कई बार जाँचता-परखता है और स्वयं पर भरोसा रखता है, उसका खजाना हमेशा धन से भरा रहता है।

ईमानदार, दानी, अपनी बात पर दृढ़ रहने वाले, कर्तव्यपरायण और मदुभाषी लोग शत्रुओं को भी अपना बना लेते हैं।

जो लोग ज़रूरत के मुताबिक काम करते हैं, लोभ में पड़कर अधिक के पीछे नहीं भागते, वे मेरी दृष्टि में ज्ञानी हैं, क्योंकि अधिक के पीछे भागने से संघर्ष पैदा होते हैं।

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi: जो प्रिय लगता है उसके बुरे काम भी अच्छे लगते हैं; लेकिन जो अप्रिय है, वह चाहे बुद्धिमान, सज्जन या विद्वान हो, बुरा ही लगता है।

जो काम करके अंत काल में अकेले बैठकर पछताना पड़े, उसे शुरू ही नहीं होने देना चाहिए।

जो व्यक्ति बात के मर्म को समझकर उसी के अनुसार कार्य करता है, संसार में उसकी कीर्ति अक्षुण्ण रहती है।

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi

Vidur Neeti Full in Hindi

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi

वह ज्ञान बेकार है जिससे कर्तव्य का बोध न हो; और वह कर्तव्य भी बेकार है जिसकी कोई सार्थकता न हो।

सज्जनता से अपकीर्ति दूर की जा सकती है, बल से संकट टाले जा सकते हैं, क्षमा से क्रोध को शांत किया जा सकता है तथा शिष्ट व्यवहार से बुरी आदतों को बदला जा सकता है।

दो व्यक्तियों की मित्रता तभी स्थायी रह सकती है जब उनके मन से मन, गूढ़ बातों से गूढ़ बातें तथा बुद्धि से बुद्धि मिल जाती है।

जो पुरुष भूतकाल की अपनी गलतियों को जानता है, जो अपने वर्तमान कर्तव्य को समर्पित भाव से करता है और जो भावी दुखों को टालने की विधि जानता है-वह कमी ऐश्वर्यहीन नहीं होता

मन, वचन और कर्म से हम लगातार जिस वस्तु के बारे में सोचते हैं, वही हमें अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। अतः हमें सदा शुभ चीजों का चिंतन करना चाहिए

अपने काम में लगे रहनेवाला व्यक्ति सदा सुखी रहता है। धन-संपत्ति से उसका घर भरा-पूरा रहता है। ऐसा व्यक्ति यश-मान-सम्मान पाता है।

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi: व्यक्ति को यह छूट है कि वह न्यायपूर्वक और धर्म के मार्ग पर चलकर इच्छानुसार सुखों का भरपूर उपभोग करे, लेकिन उनमें इतना आसक्त न हो जाए कि अधर्म का मार्ग पकड़ ले।

जिस पुरुष का अपने मन पर नियंत्रण होता है, वह मुसीबत में, युद्ध के समय, दुर्गम वन में, कठिन परिस्थिति में-न तो धैर्य खोता है, न भयभीत होता है

अगर धर्म के सार को जानना है तो वह यही है कि जो काम आपको स्वयं के लिए अच्छा न लगे, उसे दूसरे के लिए न करें।

क्रोध को प्रेम से, दुष्ट को सद्व्यवहार से, कंजूस को दान से तथा झूठ को सच से जीतना चाहिए।

विद्या के बिना मनुष्य, संतान के बिना रति-कर्म, भूखी प्रजा तथा राजा रहित राज्य दुख उठाते हैं।

ज्यादा चलने से मनुष्य बूढ़ा होता है, ज़्यादा पानी गिरने से पहाड़ों की आयु घटती है, रति-कर्म न करने से त्रियों का बुढ़ापा जल्दी आता है और कड़वी बोली से मन बुढ़ा जाता है।

जो पुरुष दान से मित्र को जीत लेता है, युद्ध से शत्रु को जीत लेता है तथा पालन-पोषण से त्री को जीत लेता है, उसका जीवन सफल है।

जो हजारों कमाता है वह जीता है और जो सैकड़ों कमाता है वह भी जीता है। इसलिए अधिक की इच्छा न करें। यह न सोचें के अधिक नहीं होगा तो जीवन ही नहीं चलेगा।

Vidur Niti Saar Sampoorn in Hindi: विदुर कहते हैं-जो पुरुष यथाशक्ति अपने कार्य में लगा रहता है, जो कर्म का फल ईश्वर के ऊपर छोड़ देता है, जिसके कार्य की संतजन भी प्रशंसा करते हैं, उस पुरुष की कीर्ति-पताका चारों कोनों में फहराती है।

अच्छाई में बुराई देखना मृत्यु जैसा कष्टकारी अवगुण है। बढ़-चढ़कर बोलना धन-हानि का कारक है। जल्दबाजी, बात पर ध्यान न देना तथा आत्मप्रशंसा-ये तीन अवगुण ज्ञान के शत्रु हैं।

सुख चाहने वाले से विद्या दूर रहती है और विद्या चाहने वाले से सुख। इसलिए जिसे सुख चाहिए, वह विद्या को छोड़ दे और जिसे विद्या चाहिए, वह सुख को।

हमारे शरीर में स्थित आत्मा को एक नदी समझिए। यह नदी ईश्वर के शरीर से निकली है। धैर्य इसके किनारे हैं, करुणा इसकी लहरें हैं, पुण्य इसके तीर्थ हैं, जो मनुष्य सदा पुण्य कर्मों में लिप्त रहता है, वह इस नदी में स्नान करके पवित्र होता है। लोभरहित आत्मा को सदा पवित्रा कहा गया है।

काम-क्रोध जैसे मगरमच्छों और पाँच इंद्रियों के जल से पूरित संसार रूपी यह नदी ‘जन्म और मरण’ के अनेक पड़ावों से भरी है। इस नदी को धैर्य की नाव से ही पार किया जा सकता है।

जो व्यक्ति अपने बुजुर्गों का आदर करता है तथा उनसे परामर्श करता है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। वह कभी मोह-माया में नहीं फँसता।

तो दोस्तों इस आर्टिकल में इस आर्टिकल में बस इतना ही आपको ये नीति कैसी लगी हमें कमेन्ट कर के जरूर बताये। अगर आप इस बुक का कम्पलीट वीडियो समरी देखना चाहते है तो ऊपर दिए लिंक से देख सकते है।

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