भीष्म नीति: बुद्धिमान व्यक्ति को पता होने चाहिए भीष्म की ये बातें

भीष्म नीति: बुद्धिमान व्यक्ति को पता होने चाहिए भीष्म की ये बातें

Bhishma Neeti full in Hindi: बुद्धिमान व्यक्ति को पता होने चाहिए भीष्म की ये बातें

भीष्म नीति: बुद्धिमान व्यक्ति को पता होने चाहिए भीष्म की ये बातें

Bhishma Neeti full in Hindi

जब पितामह भीष्म बाणों की शैया पर लेटे हुए थे तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा, तुम्हारे मन में अशान्ति है। तुम पितामह भीष्म के पास जाओ और अपनी कठिनाई का वर्णन करो। धर्म का ज्ञान रखने वालों में भीष्म सबसे श्रेष्ठ हैं।

जब वे नहीं रहेंगे तो संसार ऐसा तमोमय हो जाएगा, जैसे चन्द्रमा के न रहने से रात्रि हो जाती है। पितामह भीष्म जीवन और मृत्यु के बीच लटक रहे हैं। जाओ, उनसे जो कुछ पूछना है, पूछ लो।

युधिष्ठिर, कृष्ण और पाण्डवों के साथ कुरुक्षेत्र में पहुँचे। मृत्यु शय्या पर पड़े हुए भीष्म ने जो उपदेश उस समय दिए, उनमें से कुछ में इस आर्टिकल में आपसे शेयर कर रहा हूँ

तो चलिए शुरू करते है पहले नीति से

अपने आत्मबल, आत्म सार्मथ्य, विवेक, शालीनता और तेज से ही मनुष्य की पहचान होती है।

मृत्यु और अमृतत्व—दोनों मनुष्य के अपने अधीन हैं। मोह का फल मृत्यु और सत्य का फल अमृतत्व है।

कठिन परिस्तिथियाँ आना इस जीवन च्रक का नियम है। बिना विचलित हुए इनका सामना करना ही सफलता का द्वार है।

जिसे सत्य पर विश्वास होता है और जो अपने संकल्प पर दृढ होता है, उसका सदैव कल्याण होता रहता है।

समय अत्यधिक बलवान होता है, एक क्षण में समस्त परिस्थितियाँ बदल जाती है।

कामनाओं को त्याग देना, उन्हें पूरा करने से श्रेष्ठ है। आज तक किस मनुष्य ने अपनी सब कामनाओं को पूरा किया है? इन कामनाओं से बाहर जाओ। पदार्थ के मोह को छोड़ दो। शान्त चित्त हो जाओ।

पक्षियों के पदचिन्ह आकाश में दिखाई नहीं पड़ते, जलचर प्राणियों के पदचिन्ह भी जल में दिखाई नहीं पड़ते, उसी तरह ज्ञानियों की गतिविधियाँ भी जानी नहीं जा सकती।

मोह और तृष्णा अत्यन्त ही कठोर और विनाशकारी होते है।

अहंकार मानव का और मानव समाज का बङा शत्रु है, जो सम्पुर्ण मानव जाति के कष्ट का कारण और अन्ततः विनाश का द्वार बनता है।

अगर परमेश्वर से कुछ माँगना है तो सिर्फ़ उनके प्रति निश्चल भक्ति माँगो। जिसके आ जाने मात्र से ही संसार का समस्त वैभव तुम्हारे पास रहेगा।

विधि के विधान के आगे कोई नहीं टिक सकता। एक पुरुर्षाथी को भी वक्त के साथ मिट कर इतिहास बन जाना पढता है।

एक मनुष्य को अपनी मातृभूमि सर्वोपरि रखनी चाहिए और हर परिस्थत में उसकी रक्षा करनी चाहिए।

सत्ता सुख भोगने के लिए नही, अपितु कठिन परिश्रम करके समाज का कल्याण करने के लिए होता है।

बङे से बङा शूरवीर भी अगर अधर्म और अन्याय का साथ देता है तो धर्म के आगे उसे अन्ततः झुकना ही पढता है।

सत्य और धर्म का अनुकरण करने पर एक छोटी चींटी भी हाथी से ज़्यादा शक्तशाली हो जाता है।

अपने गुरु के प्रति आदर और प्रेम मनुष्य को विजयी बनाती है।

एक शासक को अपने पुत्र और अपने प्रजा में कोई भी भेदभाव नहीं रखना चाहिए, ये शासन में अडिगता और प्रजा को समृध्दि प्रदान करता है।

परिवर्तन इस संसार का अटल नियम है और सब को इसे स्वीकारना ही पढता है, क्योकी कोई इसे बदल नहीं सकता।

ऐसे वचन बोलो जो, दूसरों को प्यारे लगें। दूसरों को बुरा भला कहना, दूसरों की निन्दा करना, बुरे वचन बोलना, यह सब त्यागने के योग्य हैं। दूसरों का अपमान करना, अहंकार और दम्भ, यह अवगुण है।

इस लोक में जो सुख कामनाओं को पूरा करने से मिलता है और जो सुख परलोक में मिलता है, वह उस सुख का सोलहवां हिस्सा भी नहीं है जो कामनाओं से मुक्त होने पर मिलता है।

जब मनुष्य अपनी वासनाओं को अपने अन्दर खींच लेता है, जैसे कछुआ अपने सब अंग भीतर को खींच लेता है, तो आत्मा कि ज्योति और महत्ता दिखाई देती है।

संसार को बुढ़ापे ने हर ओर से घेरा है। मृत्यु का प्रहार उस पर हो रहा है। दिन जाता है, रात बीतती है। तुम जागते क्यों नहीं? अब भी उठो। समय व्यर्थ न जाने दो। अपने कल्याण के लिए कुछ कर लो। तुम्हारे काम अभी समाप्त नहीं होते कि मृत्यु घसीट ले जाती है।

त्याग के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। त्याग के बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। त्याग के बिना मनुष्य भय से मुक्त नहीं हो सकता। त्याग की सहायता से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है।

वह पुरुष सुखी है, जो मन को साम्यावस्था में रखता है, जो व्यर्थ चिन्ता नहीं करता। जो सत्य बोलता है। जो सांसारिक पदार्थों के मोह में फंसता नहीं, जिसे किसी काम के करने की विशेष चेष्टा नहीं होती।

जो मनुष्य व्यर्थ अपने आपको कोसता रहता है, वह अपने रूप रंग, अपनी सम्पत्ति, अपने जीवन और अपने धर्म को भी नष्ट कर देता है। इसके विपरीत जो पुरुष शोक से बचा रहता है, उसे सुख और आरोग्यता, दोनों प्राप्त हो जाते हैं।

सुख दो प्रकार के मनुष्यों को मिलता है। उनको जो सबसे अधिक मूर्ख हैं, दूसरे उनको जिन्होंने बुद्धि के प्रकाश में तत्व को देख लिया है। जो लोग बीच में लटक रहे हैं, वे दुखी रहते हैं।

श्रेष्ठ और सज्जन पुरुष का चिह्न यह है कि वह दूसरों को धनवान देख कर जलता नहीं। वह विद्वानों का सत्कार करता है और धर्म के सम्बन्ध में प्रत्येक स्थान से उपदेश सुनता है।

जो पुरुष अपने भविष्य पर अधिकार रखता है जो समयानुकूल तुरन्त विचार कर सकता है और उस पर आचरण करता है, वह पुरुष सुख को प्राप्त करता है। आलस्य मनुष्य का नाश कर देता है।

भोजन अकेले न खाये। धन कमाने का विचार करे तो किसी को साथ मिला ले। यात्रा भी अकेला न करे। जहाँ सब सोये हुए हों, वहाँ अकेला जागरण न करे।

जो पुरुष अपने आपको वश में करना चाहता है उसे लोभ और मोह से मुक्त होना चाहिए।

सत्य धर्म सब धर्मों से उत्तम धर्म है। सत्य ही सनातन धर्म है। तप और योग, सत्य से ही उत्पन्न होते हैं। शेष सब धर्म, सत्य के अंतर्गत ही हैं।

सत्य बोलना, सब प्राणियों को एक जैसा समझना, इन्द्रियों को वश में रखना, ईर्ष्या द्वेष से बचे रहना क्षमा, शील, लज्जा, दूसरों को कष्ट न देना, दुष्कर्मों से पृथक रहना, ईश्वर भक्ति, मन की पवित्रता, साहस, विद्या-यह तेरह सत्य धर्म के लक्षण हैं। वेद सत्य का ही उपदेश करते हैं। सहस्रों अश्वमेध यज्ञों के समान सत्य का फल होता है।

सत्य ब्रह्म है, सत्य तप है, सत्य से मनुष्य स्वर्ग को जाता है। झूठ अन्धकार की तरह है। अन्धकार में रहने से मनुष्य नीचे गिरता है। स्वर्ग को प्रकाश और नरक को अन्धकार कहा है।

स्वयं अपनी इच्छा से निर्धनता का जीवन स्वीकार करना सुख का हेतु है। यह मनुष्य के लिए कल्याणकारी है। इससे मनुष्य क्लेशों से बच जाता है। इस पथ पर चलने से मनुष्य किसी को अपना शत्रु नहीं बनाता। यह मार्ग कठिन है, परन्तु भले पुरुषों के लिए सुगम है।

जो पुरुष अपने आपको वश में करना चाहता है उसे लोभ और मोह से मुक्त होना चाहिए।

दम के समान कोई धर्म नहीं सुना गया है। दम क्या है? क्षमा, धृति, वैर-त्याग, समता, सत्य, सरलता, इन्द्रिय संयम, कर्म करने में उद्यत रहना, कोमल स्वभाव, लज्जा, बलवान चरित्र, प्रसन्नचित्त रहना, सन्तोष, मीठे वचन बोलना, किसी को दुख न देना, ईर्ष्या न करना, यह सब दम में सम्मिलित हैं।

पुण्‍य का संचय करना ज़रूरी होता है। लेकिन जो व्‍यक्ति जीवित रहता है वही पुण्‍य का संचय करता है। इससे आयु में वृद्धि होती है। इसलिए कभी भी जीवन का परित्‍याग नहीं करना चाहिए। यहाँ पितामह भीष्म ने यह बताया है कि जीवन से निराश नहीं होना चाहिए और आत्महत्या का विचार कभी मन में नहीं लाना चाहिए।

अच्‍छे आचार से मनुष्‍य को लंबी आयु मिलती है। इससे ही मनुष्‍य को संपत्ति भी प्राप्‍त होती है। पितामह कहते हैं अच्‍छे आचार विचार से ही व्‍यक्ति इस लोक और परलोक में निर्मल कीर्ति प्राप्‍त करता है। इसलिए व्‍यक्ति को लंबी आयु पाने के लिए अपने आचरण को शुद्ध रखना चाहिए।

Bhishma Neeti full in Hindi

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तो दोस्तों इस आर्टिकल (Bhishma Neeti full in Hindi) में इस आर्टिकल में बस इतना ही आपको ये (Bhishma Neeti full in Hindi) नीति कैसी लगी हमें कमेन्ट कर के जरूर बताये। अगर आप इस बुक का कम्पलीट वीडियो समरी देखना चाहते है तो ऊपर दिए लिंक से देख सकते है।

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