मन को खुश करने वाले अनमोल वचन – Precious Words that will please your mind in Hindi
आज मैं आपसे मन को खुश करने वाले अनमोल वचन – Precious Words that will please your mind in Hindi आपसे साझा करूँगा। जिससे आपको शांति, सुकून, प्रेम, जोश, जूनून, जज्बा और ज़िंदगी में बेहतर काम करने का मोटिवेशन मिलेगा तो चलिए शुरू करते है मन को खुश करने वाले पहले अनमोल वचन से।
“जीवन उस इंसान के साथ बिताएँ जो आपको ख़ुशी दे, उसके साथ नहीं जिसे आप को हमेशा प्रभावित करना पड़े।”
“प्रसन्न करने का उपाय है, स्वयं प्रसन्न रहना।”
“प्रेम ही है जो बेंच के दोनों किनारों पर जगह खाली होने पर भी दो लोगों को बीच में खींच लाता है।”
“अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता।”
“इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं: एक दुख और दूसर श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्य का विकास नहीं होता।”
“वही समाज सदैव सुखी रहकर तरक्क़ी कर सकता है, जिसमें लोगों ने आपसी प्रेम को आत्मसात कर लिया।”
” सभी प्रेम परिवर्तित होते हैं और उनमे बदलाव आता है। मुझे नहीं पता है कि आप हर समय प्रेम में रह सकते हैं।”
“हम आदर्श प्रेम का निर्माण करने कि बजाये आदर्श प्रेमी को खोजने में अपना समय बर्वाद कर देते हैं”
“एक औरत जिस आदमी से प्यार करती है उसका चेहरा ऐसे जानती है जैसे एक नाविक खुले समुन्द्र को”
“प्रेम की शक्ति दण्ड की शक्ति से हज़ार गुनी प्रभावशाली और स्थायी होती है।”
“हर सच्चा क्रांतिकारी वास्तव में गहन प्रेम की भावना से संचालित होता है।”
“एक व्यक्ति दूसरे के मन की बात जान सकता है, तो केवल सहानुभूति और प्यार से, उम्र और बुद्धि से नहीं।”
“आप किसी से इसलिए प्रेम नहीं करते क्योंकि वे खूबसूरत हैं, बल्कि वे खूबसूरत हैं क्योंकि आप उनसे प्रेम करते हैं।”
“दूसरो से प्रेम करना अपने आप से प्रेम करना है।”
“मुहब्बत त्याग की माँ है, जहाँ जाती है, बेटे को साथ ले जाती है।”
“अपने स्नेह का पूर्ण प्रदर्शन किए बिना आप अपना स्नेह-भाव दूसरों तक नहीं पहुँचा सकते।”
“कभी–कभी एक पावरफुल चश्मा ही प्यार में पड़े इंसान के इलाज़ के लिए पर्याप्त होता है”
“प्रेम के बिना जीवन एक ऐसे वृक्ष के समान है, जिस पर न कोई फूल हो, न फल।”
“हम जब तक स्वयं माता-पिता नहीं बन जाएँ, माता-पिता का प्यार कभी नहीं जान पाते।”
“एक छोटी-सी आशा प्यार के जन्म के लिए पर्याप्त होती है”
” सभी मनुष्य एक प्रेमी से प्यार करते हैं।”
“किसी के द्वारा अत्यधिक प्रेम मिलने से आपको शक्ति मिलती है और किसी को अत्यधिक प्रेम करने से आपको साहस मिलता है।”
“अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता।”
“सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।”
“अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता।”
“दूसरो से प्रेम करना अपने आप से प्रेम करना है।”
“प्यार होते ही सभी कवी बन जाते हैं।”
“प्रेम एक ऐसा फल है, जो हर मौसम में मिलता है और जिसे सभी पा सकते हैं।”
“एक प्रेम-युक्त ह्रदय सभी ज्ञान का प्रारंभ है”
“हमारे जीवन में जो भी दृढ और स्थायी ख़ुशी है उसके लिए नब्बे प्रतिशत प्रेम उत्तरदायी है।”
“एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है।”
“सच्चा प्रेम भूत की तरह है–चर्चा उसकी सब करते हैं, देखा किसी ने नहीं।”
“प्रसन्नता स्वास्थ्य देती है, विषाद रोग देते है।”
“जब प्यार पागलपन ना हो तो वह प्यार नहीं है।”
“मुस्कान प्रेम की भाषा है।”
स्वामी विवेकानंद जी का कथन है– “प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है। प्रेम इसलिए विस्तार है, क्योंकि प्रेम में हमारे अलावा दूसरे भी शामिल होते हैं जबकि स्वार्थ केवल स्व तक ही सीमित होता है।”
“तुम्हें प्रेम शब्द सुनकर पीड़ा उठ आती होगी, चोट लग जाती होगी। तुम्हारे घाव हरे हो जाते होंगे। फिर से तुम्हारी अपनी पुरानी यादें उभर आती होंगी।”
“माता-पिता तथा गुरुजनों का प्रेम, ममता तथा स्नेह कहलाता है जो हमें सदैव शिखर पर प्रतिस्थापित करने का प्रयास करता है।”
“प्रेम एक जुड़ाव है, कोई बंधन नहीं क्योंकि बाँधने के लिए लाजिमी है गाँठ लगाना और जहाँ गाँठ है वहाँ बंधन तो हो सकता है परंतु प्रेम नहीं”
“प्रेम एक जुड़ाव है, कोई बंधन नहीं क्योंकि बाँधने के लिए लाजिमी है गाँठ लगाना और जहाँ गाँठ है वहाँ बंधन तो हो सकता है परंतु प्रेम नहीं”
“प्रेम से मिलने वाली जीत स्थाई होती है और क्रोध से मिलने वाली जीत, एक नये संघर्ष से पहले का छोटा-सा विराम होती हैै।”
“किसी को प्रेम देना सबसे बड़ा उपहार है और किसी का प्रेम पाना सबसे बड़ा सम्मान है।”
“माता-पिता तथा गुरुजनों का प्रेम, ममता तथा स्नेह कहलाता है जो हमें सदैव शिखर पर प्रतिस्थापित करने का प्रयास करता है”
“जब समकक्षों के साथ प्रेम हो जाये तो मित्रता कहलाती है तथा यही प्रेम जब आपके अधीनस्थ आपसे करते हैं तो अनुशासन कहलाता है।”
“प्रेम, ईश्वर है, जब तक इसमें आसक्ति और स्वार्थ न मिलाया जावे। जब इसमें स्वार्थ मिलेगा तब प्रेम नहीं होगा।”
“लेकिन मैं उस प्रेम की बात नहीं कर रहा हूँ। उस प्रेम का तो तुम्हें अभी पता ही नहीं है, वह तो कभी असफल होता ही नहीं। उसमें अगर कोई जल जाए तो निखरकर कुंदन बन जाता है, शुद्ध स्वर्ण हो जाता है”
“प्रेम के बहुत रूप हैं और हर रूप में यह कल्याण ही करता है व्यक्ति का, यदि इसके पथ से व्यक्ति विचलित न हो।”
“जब ईश्वर से प्रेम होता है तो उसे भक्ति कहते हैं और ईश्वर को जब भक्त से प्रेम होता है तो वत्सलता कहलाता है और प्रेम की भावना में वशीभूत होकर नंगे पैर दौड़ पड़ते हैं भगवान।”
“जब समकक्षों के साथ प्रेम हो जाये तो मित्रता कहलाती है तथा यही प्रेम जब आपके अधीनस्थ आपसे करते हैं तो अनुशासन कहलाता है”
“प्रेम के बहुत रूप हैं और हर रूप में यह कल्याण ही करता है व्यक्ति का, यदि इसके पथ से व्यक्ति विचलित न हो।”
“तुम्हें प्रेम शब्द सुनकर पीड़ा उठ आती होगी, चोट लग जाती होगी। तुम्हारे घाव हरे हो जाते होंगे। फिर से तुम्हारी अपनी पुरानी यादें उभर”
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