Positive Thinking Book Summary in Hindi By Napoleon Hill : दोस्तों आज में आपसे Nepoliyan Hill की बुक (Positive Thinking Book Summary in Hindi By Napoleon Hill – सकारात्मक सोच की शक्ति) Positive Thinking की समरी शेयर करने जा रहा हूँ जिससे आपको यह पता चलेगा कि आपके भीतर एक ईश्वर-प्रदत्त शक्ति है। जिससे
- आपका अपनी भावनाओं पर नियंत्रण होगा,
- आप अपने भीतर के भय पर नियंत्रण कर लेंगे।
- आप अपनी विगत की विफलताओं और दुःखों पर सोचना छोड़ देंगे और उन्हें अपने जीवन में दोबारा होने से भी रोकेंगे।
Positive Thinking Book Summary in Hindi By Nepoleon Hill
तो बिना किसी देरी की करते है काम की बात
आईये सबसे पहले जानते है पी.एम.ए क्या होता है?
विषय सूची
Positive Thinking Book Summary in Hindi By Napoleon Hill – सकारात्मक सोच की शक्ति
पी.एम.ए क्या होता है?
जब आपके पास पी.एम.ए होता है तो आप अपने आपसे खुश रहते हैं और दूसरों के साथ भी खुश रहते हैं। आपके भीतर वह आंतरिक भाव, वह आंतरिक मनोदशा होती है, जो आपको आत्म-सम्मान और उपयोगी भावनाएँ देती है। आपकी ओर सकारात्मक भाव और परिस्थितियाँ आकर्षित होती हैं और नकारात्मक (Negativity) आपसे दूर हो जाती है। सकारात्मक आदतें आपके मस्तिष्क को अधिक सजग रहने, आपकी कल्पनाओं को अधिक सक्रिय रखने, आपके उत्साह को बढ़ाने और इच्छा शक्ति को मज़बूत करने में स्वाभाविक रूप से प्रभावित करती हैं।
सीखने के ऊपर एक चीनी कहावत है, ‘मैं सुनता हूँ और मैं भूल जाता हूँ। मैं देखता हूँ और वह मुझे याद रहता है। मैं जब करता हूँ तो यह मुझे समझ में आता है।’ तो चलिए शुरू करते है पहले सूत्र से
पहला सूत्र: पूरे विश्वास के साथ अपने मस्तिष्क पर काबू कीजिए
आपके मस्तिष्क में दस अरब कोशिकाएँ हैं। ये सभी कोशिकाएँ आपस में एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं और इनमें सभी आपके अनुसार कार्य करने के लिए बनी हैं। फिर भी, सबसे बुद्धिमान व्यक्ति भी इस शक्ति का पूरी तरह प्रयोग नहीं कर सकता है। इतिहास में महानतम व्यक्तियों के आइक्यू भी औसत व्यक्ति से ज़्यादा नहीं रहे हैं।
उनकी उपलब्धि और महानता का कारण है उनका अपनी मानसिक शक्तियों के प्रयोग करने की उनकी क्षमता थी। आपके भीतर अपार मानसिक क्षमताएँ हैं, लेकिन यह आप पर निर्भर करता है कि अपने मस्तिष्क की इस क्षमता का प्रयोग सकारात्मक सोचने में करें, ताकि वे सभी आपके फायदे के लिए काम करें।
आईये इसे एग्जाम्पल से समझते है
नौकायन के क्षेत्र में दी जानेवाली दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित ट्रॉफी को अमेरिका का कप कहा जाता है, क्योंकि इसे 138 वर्षों तक अमेरिका टीम ने जीता था। फिर सन् 1983 में ऑस्ट्रेलिया ने इस कप को जीतकर दुनिया को अचंभित कर दिया। उस वर्ष हारनेवाले अमेरिकी नौकायन दल का नेता डेनिस कोनर था।
लेकिन चार साल के बाद वह और उसके स्टार्स एंड स्ट्राइपस का दल अमेरिकी कप को वापस अमेरिका ले गया। यह करने के लिए कोनर को अविश्वसनीय विपरीत परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करनी पड़ी, साथ ही इस धारणा पर भी कि उसी के कारण अमेरिकी कप से अमेरिका को हाथ धोना पड़ा।
कोनर की उपलब्धियों के केंद्र में जो था—जिसे उसने ‘संकल्प के प्रति संकल्प’ का नाम दिया—उस लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण, जिसने उसे उस तरह की नौका बनाने और एक ऐसा दल तैयार करने पर अपनी पूरी ऊर्जा लगा देने के लिए मदद की, जो जीत सके। “एक बार जब आप संकल्प कर लेते हैं तो…” कोनर ने कहा, ” आपका पूरा ध्यान एक ही काम पर केंद्रित होता है। अपने संकल्प के प्रति संकल्प को आज ही अपने पी.एम.ए के विकास के लिए प्रयोग कीजिए।
दूसरा सूत्र: अपने मस्तिष्क को उन चीजों पर केंद्रित कर दीजिए, जो आपको चाहिए और उन चीजों से दूर, जो आपको नहीं चाहिए।
टेरी विलियम एक अस्पताल में स्वयंसेवक थी और उसे लोगों के साथ काम करना बहुत अच्छा लगता था लेकिन समस्याओं से वह परेशान हो गई और उसने इस नौकरी को छोड़ने का निर्णय लिया। उसे यह महसूस हुआ कि वह जिस चीज से प्यार करती है, वह है अच्छी खबरों को बाँटना, न कि बुरी खबरों को और फिर उसने एक प्रचार कंपनी खोली, जिसके शीघ्र ही कई ग्राहक बन गए।
वह कभी भी देश की श्रेष्ठ प्रचारक नहीं बनती, यदि उसे अपनी पहली महत्त्वाकांक्षा के बिखरने पर निराशा नहीं मिली होती। विगत में मिली निराशा या अप्रिय परिस्थितियों के कारण मिले अनुभव को भूल जाइए। असफलताओं, निराशाओं या दूसरों के प्रति नकारात्मक भावनाओं के साथ जीने से स्थिति और भी बदतर होती है। अपनी असंतुष्टि को किसी ऐसी चीज के साथ कम कीजिए, जिससे आपको पे्ररणा मिलती है।
तीसरा सूत्र: स्वर्णिम नियम का सहारा लीजिए
दूसरों के साथ भी वैसा ही कीजिए, जैसा कि आप दूसरों से अपने लिए अपेक्षा करते हैं। इसके विपरीत, दूसरों के साथ ऐसा मत कीजिए, जो आप उनसे अपने लिए अपेक्षा नहीं करते। कभी-कभी स्वर्णिम नियम का सहारा लेने का आशय यह होता है आपको दूसरों के लिए खड़ा होना चाहिए; उनका अभिभावक, रक्षक और सलाहकार बनना चाहिए। हर व्यक्ति और हर परिस्थिति में अच्छी चीज की तलाश कीजिए। दूसरों की सहायता कीजिए, प्रशंसा कीजिए और उत्साहवर्धन कीजिए, न कि आलोचना या आरोप कीजिए या बदला लीजिए। किसी की मदद करने के लिए अतिरिक्त प्रयास कीजिए।
चौथा सूत्र: आत्म-परीक्षण करके सभी नकारात्मक विचारों को निकालिए
कुछ लोगों को तब तक इस बात का पता नहीं चलता कि वे नकारात्मक ढंग से सोचते हैं, जब तक कि वे अपने विचारों, कार्यों और प्रतिक्रियाओं को जाँचने का सजग प्रयास नहीं करते हैं। आत्म-मूल्यांकन की प्रक्रिया सरल है। बस, अपने से पूछिए, “क्या यह सकारात्मक है या नकारात्मक?” जब आप अपने मस्तिष्क पर नियंत्रण प्राप्त करने और अपनी कल्पना-शक्ति के बल पर इसे अपनी मनचाही दिशा में मोड़ने में विफल हो जाते हैं तो इस बात की बहुत संभावना है कि प्रतिक्रियाएँ नकारात्मक होंगी, न कि सकारात्मक।
आईये इसे एग्जाम्पल से समझते है
डॉ. बर्टिस बेरी एक सफल हास्य अभिनेत्री और गायक हैं, जिनका अपना टेलीविजन टॉक शो है और जो पूरे देश में अपनी कला का प्रदर्शन करती हैं। वह अपने परिवार में कॉलेज जानेवाली पहली सदस्य थीं, इसलिए जब उन्होंने उपाधि प्राप्त की तो उनकी अपेक्षा थी कि उसके सभी सम्बंधी वहाँ आएँ और उसे उल्लसित करें। जब उसे मालूम हुआ कि उसके परिवार का कोई भी सदस्य नहीं आ रहा है तो वह उत्तेजित हो गई और उसने निर्णय लिया कि वह उपाधि समारोह में हिस्सा नहीं लेगी। जब उसके प्रोफेसर ने उसे समझाया तो वह मान गई।
जब उसने यह देखा कि उसे दो बार के ‘नोबेल पुरस्कार’ विजेता के हाथों विश्वविद्यालय के सबसे प्रमुख विद्यार्थी की उपाधि मिली तो वह अचंभित रह गई। वह एक अद्भुत सम्मान लगभग खो चुकी थी, क्योंकि उसका अहंकार आहत हुआ था; लेकिन उसने उस पर विजय प्राप्त कर ली और स्थिरता के साथ सफलता की सीढि़याँ चढ़ी।
आपके मस्तिष्क में उभरनेवाले नकारात्मक विचार आपके विगत का नतीजा होते हैं जिसे आपने पीछे छोड़ने का निर्णय कर लिया है। उनकी उत्पत्ति उन अनुभवों से होती है, जिनसे उबरने का आपने फ़ैसला कर लिया है और उनका इस बात से कोई सम्बंध नहीं होता है कि आप अपने आपको किस तरह का विचारक और कर्ता बनाने जा रहे हैं। उनका सामना सकारात्मक विचारों के साथ शीघ्र और प्रबलता के साथ कीजिए।
सूत्र पाँच: खुश रहिए! दूसरों को भी खुश रखिए
खुश रहने के लिए ख़ुशी का प्रदर्शन कीजिए। आप नए विचार के लिए नए ढंग से काम कर सकते हैं। उत्साही बनिए, उत्साह का प्रदर्शन कीजिए। ख़ुद पर और समस्त संसार पर हँसिए।
यदि आपको चिंता करनी है तो सकारात्मक ढंग से चिंता कीजिए। अपनी सबसे ज़्यादा बिकनेवाली किताब ‘साइको-साइबरनेटिक्स’ में डॉ. मैक्सवेल ने पाठकों को रचनात्मक रूप से चिंता करने के लिए बताया है। वह कहते हैं “चिंता करना यह सोचना है—क्या ग़लत हो सकता है और इसका समाधान यह है कि जागरूक रूप से यह सोचना कि क्या सही हो सकता है।”
माल्टज का यह विश्वास है कि अवचेतन मन वास्तविक अनुभव और काल्पनिक अनुभव में अंतर नहीं कर पाता है। इस सिद्धांत का लाभ उठाने के लिए उसने निम्नलिखित अभ्यास की सलाह दी है। प्रतिदिन एक निश्चित समयावधि निर्धारित कीजिए, जबकि आप अपनी आँखें बंद करके लक्ष्यों के बारे में कल्पना कर सकते हैं।
अपने आपको इस तरह देखिए मानो आपने उन लक्ष्यों को पहले ही प्राप्त कर लिया है। कल्पना कीजिए कि वह हासिल किया गया लक्ष्य कैसा लगता है और कैसा महसूस होता है। जब कभी भी आप स्वयं को नकारात्मक विचारों में घिरा पाएँ, तुरंत स्वयं को ऐसे विचारों को मन में आने देने से रोकने का आदेश दीजिए। फिर अपने मस्तिष्क में उन निराशाजनक चित्रों में स्थान पर वे चित्र बनाइए, जो वास्तव में आप अपने जीवन में होते देखना चाहते हैं। यह प्रयास कीजिए। यह कारगर होता है। वह अद्भुत भावना, जिसका आपको अनुभव होगा, वही पी.एम.ए. है।
छठा सूत्र: सहनशीलता की आदत डालिए
लोगों के प्रति खुला मन रखिए। लोग जैसे हैं, उन्हें उसी रूप में पसंद करने और स्वीकार करने की कोशिश कीजिए, न कि यह अपेक्षा कीजिए कि वे वैसे हो जाएँ, जैसा आप चाहते हैं।
यह एक सच्ची कहानी है। न्यू इंग्लैंड उच्च विद्यालय का एक छात्र था, जो उच्च कोटि का जिमनॉस्ट भी था। वह चैंपियनशिप मीटिंग के लिए जा रहा था। जैसे ही वह किसी विशेष पुल के ऊपर पहुँचा, उसने पुल की रेलिंग में दरार देखी। वह रुक गया और नीचे नदी में एक ट्रक को गिरा हुआ देखा। दुर्घटना उसी समय हुई थी। ट्रक अब भी डूब ही रहा था और ट्रक का ड्राइवर उससे बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था।
उच्च विद्यालय के उस नौजवान ने अपने जूते उतारे और नीचे उफनती नदी में कूद पड़ा। घबराया हुआ ट्रक ड्राइवर ने खिड़की का शीशा नीचे किया और उस युवक ने अपने वर्षों के प्रशिक्षण और अभ्यास के कारण अपनी हर एक मांसपेशी व अपनी ताकत का प्रयोग किया और उस ट्रक ड्राइवर को ट्रक से बाहर खींचा। उसने ड्राइवर को खींच निकाला और तैरकर उसे तट पर लाया। इस तरह उस ड्राइवर की जान बचाई।
वह जिमनास्ट उस रात उस राज्य स्तरीय मीटिंग में भाग नहीं ले पाया; लेकिन इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा, क्योंकि स्कूल अधिकारियों ने पहले ही प्रतियोगिता में उसके प्रवेश को प्रतिबंधित कर रखा था, क्योंकि उसके बाल लंबे थे। शिक्षा: किसी व्यक्ति के चरित्र का आकलन उसके बालों की लंबाई से मत कीजिए। मानव के प्रति दया-भाव से आपके और दूसरों के मन में भी पी.एम.ए. का विकास होता है। खुश रहने के लिए दूसरों को खुश रखिए।
सातवाँ सूत्र: स्वयं को सकारात्मक सलाह दीजिए
अपने मस्तिष्क को इस तरह से प्रशिक्षित कीजिए कि यह हर समय ही सकारात्मक भाव को अभिव्यक्त करे। आपको यह मालूम होना चाहिए कि आप उन्हीं विचारों या भावनाओं को भौतिक सत्य के रूप में परिवर्तित करते हैं, जो हमेशा आपके मन में रहती हैं। आपने शायद यह कहावत सुनी होगी, “आप मुझे वह बताइए, जिसके बारे में आप सोच रहे हैं और मैं आपको यह बताऊँगा कि आप कौन हैं।”
जितना ज़्यादा आप उद्देश्यपूर्ण ढंग से किसी संदेश को ख़ुद दोहराते हैं और उसमें जितना ज़्यादा अपनी भावना और अपना विश्वास डालते हैं, उतना ही ज़्यादा प्रभावशाली रूप से यह आपके अवचेतन मन में बैठ जाता है।
क्या सफल व्यक्ति जीने के कुछ विशेष रहस्य जानते हैं? वे किसी वस्तु के विचित्र पक्ष की तलाश करते हैं। आज से आप भी करेंगे। आज से आप भी अपनी कमजोरियों पर हँसेंगे आज से आप भी अपने आपको इतनी गंभीरता से नहीं लेंगे। आज से आप तनाव से मुक्त होने के लिए अपने हास्य ज्ञान का विकास करेंगे, ताकि प्रतिदिन किसी चीज पर हँस सकें। आज से आप अपनी समस्याओं के समाधान के रूप में हास्य का प्रयोग करेंगे।
आठवाँ सूत्र: अपनी प्रार्थना की शक्ति का प्रयोग कीजिए
हो सकता है कि ईश्वर के अस्तित्व के प्रति आप अनिश्चित होंगे, या हो सकता है कि आपको यह विश्वास भी हो कि उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है; लेकिन आपको प्रार्थना की शक्ति में विश्वास दिलाने के लिए कुछ आशावादी प्रयोग करने होंगे।
प्रार्थना वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा आप उस व्यवस्था के भीतर अपने स्थान को स्वीकर करते हैं और इसे बदलने के लिए अपने आपको तैयार करना शुरू कर देते हैं। आप जितना ज़्यादा ईश्वर और उसकी उदारता को स्वीकर करते हैं, उतना ही अच्छा है; लेकिन यदि आप इस पर संदेह भी करते हैं और वह संदेह बहुत देर तक नहीं रहेगा,
अपनी प्रार्थना की शक्ति का प्रयोग कीजिए ऐपिसकोपल के पुजारी सैम शूमेकर ने 1950 के दशक में एक योजना शुरू की, जिसे अब ‘पीट्सबर्ग प्रयोग’ के नाम से जाना जाता है। वह और व्यापारियों का एक दल नियमित रूप से मिलते थे। कुछ लोगों को तो ईश्वर की सत्ता में, जबकि कुछ लोगों को ईश्वर के अस्तित्व में निश्चित रूप से विश्वास नहीं था। कुछ लोग ईश्वर की सत्ता में बिल्कुल ही विश्वास नहीं करते थे।
शूमेकर ने उनमें से हर एक को खुले मन से अपने साथ तीस दिनों तक एक प्रयोग में शामिल होने को कहा, ताकि इस पूरे प्रश्न का उत्तर ढूँढा जाए कि ईश्वर का अस्तित्व है भी कि नहीं। उस समय उन्होंने उन सभी व्यक्तियों को अपने दिन की शुरुआत इस प्रार्थना से करने को कहा, “हे ईश्वर! मैं आपको नमन करता हूँ। आज आप मेरे लिए क्या लाए हैं? मैं उसका एक हिस्सा बनना चाहता हूँ।” फिर शूमेकर ने उन सभी व्यक्तियों से कहा—वे उस दिन अपने जीवन से जुड़ी घटित होनेवाली घटनाओं पर नज़र रखें, खुले मन से इस संभावना को देखें कि उनके जीवन में ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण ज़रूर मिलेगा।
तीस दिन के इस प्रयोग के बाद उनमें से सभी के पास उन्हें बताने के लिए सकारात्मक परिणाम थे। उनमें से हर एक व्यक्ति को यह अहसास हो गया कि उन लोगों को अपने जीवन में ईश्वर के होने का प्रमाण मिला है। इस विश्वास के साथ कि यह भी पूरा होगा, आप स्वयं भी पीटसबर्ग प्रयोग करके देखिए। यह होगा।
Positive Thinking Book Summary in Hindi By Napoleon Hill
Positive Thinking Book Summary in Hindi By Napoleon Hill
नौवाँ सूत्र: लक्ष्य निर्धारित कीजिए
अपने लक्ष्य को निर्धारित करना अपने मस्तिष्क को उन चीजों पर लगाना है, जो आप चाहते हैं और उन चीजों से हटाना है, जो आप नहीं चाहते हैं। दोस्तों इस पॉइंट को आलरेडी मेने एक अलग आर्टिकल में आपसे साझा काफ़ी पहले कर चूका हूँ अगर आपने अभी तक वह आर्टिकल नहीं पढ़ा तो यहाँ क्लिक करके उसे पढ़ ले।
दसवाँ सूत्र: अध्ययन कीजिए, सोचिए और प्रतिदिन योजना बनाइए
अपने जीवन से हर वह चीज प्राप्त करने के लिए, जो आप चाहते हैं, आपका स्वयं के प्रति यह कर्तव्य है कि आप सकारात्मक मानसिक भाव का विश्वास करें और उसे बनाए रखें।
पी.एम.ए. की शक्ति व्यापक है। यह आपको ऐसी किसी भी जगह पहुँचा सकता है, जहाँ आप जाना चाहते हैं। उसकी मदद से असंख्य लोग सामान्य परिस्थितियों से निकलकर संपत्ति, सुख और सफलता की ऊँचाइयों पर पहुँच गए।
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Closing Remarks
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