The Seven Spiritual Laws of Success Book Summary in Hindi : दोस्तों आज में आपसे Deepak Chopdha की बुक The Seven Spiritual Laws of Success की समरी शेयर करने जा रहा हूँ जिससे आप बिन प्रयास और सहज रूप से अपनी इच्छापूर्ति करने की क्षमता को विकसित कर पाएंगे। तो बिना किसी देरी की करते है काम की बात।
बृहदारण्यक उपनिषद में लिखा है जैसी आपकी प्रबल इच्छा होती है, आप वैसे ही हो जाते हैं जैसी आपकी इच्छा होती है वैसे ही आपके संकल्प हो जाते हैं जैसे आपके संकल्प होते हैं वैसे ही आपके कर्म हो जाते हैं जैसे आपके कर्म होते हैं वैसा ही आपका भाग्य हो जाता है – बृहदारण्यक उपनिषद iv.4.5
The Seven Spiritual Laws of Success Book Summary in Hindi
विषय सूची
विशुद्ध ऊर्जा का सिद्धांत
विशुद्ध ऊर्जा के साम्राज्य में प्रवेश पाने की विधा है किसी के बारे में कोई राय न बनाने का, और किसी निर्णय निष्कर्ष पर न पहुंचने का अभ्यास करना। किसी के बारे में कोई राय बनाने की आदत में आप हर चीज़ का लगातार मूल्यांकन करते रहते हैं कि वह सही है या ग़लत है।
जब आप लगातार मूल्यांकन और विश्लेषण करने में लगे रहते हैं तब आप अपके मन में बहुत से विचार आ जाते हैं। और ये विचार आपके और विशुद्ध ऊर्जा के साम्राज्य के बीच के प्रवाह को संकीर्ण कर देता है और इसलिए उसमें कुछ भी आने-जाने की जगह रहती ही नहीं है। जब आपका मन विचारों से खाली रहेगा तभी आप विशुद्ध ऊर्जा से संपर्क बना सकते है। और इसे खाली रखने के लिए कुछ समय के लिए अकेले रहे और कुछ भी सोचने का कोशिश न करें।
The Seven Spiritual Laws of Success Summary in Hindi
मौन व ख़ामोशी के जरिए, ध्यान के जरिए, और कोई राय न बनाने के जरिए आप सफलता के प्रथम सिद्धांत – विशुद्ध ऊर्जा के सिद्धांत – में प्रवेश पा जायेंगे। और, जब आप ऐसा कर लेंगे तब आप चाहे कोई नदी हो, वन हो, पर्वत हो, झील हो या समुद्र तट हो, प्रकृति के किसी भी रूप से जुड़ना आपको विशुद्ध ऊर्जा के साम्राज्य में जाने में सहायता करेगा।
अर्पण का सिद्धांत
सफलता का दूसरा आध्यात्मिक सिद्धांत है अर्पण का सिद्धांत यानी दूसरों को देने का सिद्धांत। जितना अधिक आप देंगे उतना ही अधिक आप पायेंगे क्योंकि जीवन में जो कुछ भी महत्वपूर्ण है वह तभी बढ़ता है जब वह दे दिया जाता है। अगर देने पर आपको ऐसा लगे कि आपने कुछ खो दिया है तो वह सचमुच में देना नहीं होता और इसलिए वह बढ़ कर वापस भी नहीं आता।
देने और लेने के पीछे आपका जो मन्तव्य होता है, आपकी जो नीयत होती है वह सबसे अधिक महत्व रखती है। देना जब हृदय से होता है और बिना शर्त होता है तो उसकी वापसी भी देने के बराबर अनुपात में ही होती है। इसलिए, देना उदासीन भाव से नहीं बल्कि खुशी-खुशी होना चाहिए – देने में मन का भाव ऐसा हो कि जब भी आप दें तो देने में आपको आनंद अनुभव हो। ऐसे देने के पीछे रहने वाली ऊर्जा कई गुना बढ़ जाया करती है।
The Seven Spiritual Laws of Success Hindi Summary
दोस्तों अर्पण के सिद्धांत पर चलना वास्तव में बड़ा ही सरल है: अगर आप खुशी चाहते हैं तो दूसरों को खुशी दीजिए, अगर आप प्रेम चाहते हैं तो दूसरों को प्रेम दीजिए, अगर आप भौतिक संपन्नता और विपुलता चाहते हैं तो दूसरों की भौतिक विपन्नता को दूर करने में उनकी मदद कीजिए।
अगर आप चाहते हैं कि आपके जीवन में मंगल ही मंगल हो तो अपने मन से हर किसी का मंगल होने की कामना कीजिए। और ये यह निश्चय कर लीजिए कि आप जहां कहीं भी जायेंगे वहां कुछ न कुछ देकर आयेंगे।
जब तक आप देते रहेंगे, तब तक आप पाते रहेंगे। जितना अधिक आप देंगे, उतना ही अधिक आपका विश्वास इस चमत्कारी सिद्धांत पर बढ़ता चला जायेगा। और चूंकि आप अधिक से अधिकतर पाने लगेंगे, इसलिए आपके देने की सामर्थ्य भी अधिक से अधिकतर होती चली जायेगी।
कर्म का सिद्धांत
सफलता का तीसरा आध्यात्मिक सिद्धांत है कर्म का सिद्धांत। कर्म में दोनों बातें शामिल रहती हैं – हमारा करना भी और करने का फल भुगतना भी, कार्य भी और परिणाम भी- साथ-साथ, क्योंकि हमारा कोई भी कर्म करना ऊर्जा का एक ऐसा बल उत्पन्न करता है जो कि उसी रूप में हमारे पास लौट कर आता है।
अगर मैं आपका अपमान करता हूं तो बहुत संभव यही है कि आप अपमानित महसूस करेंगे। अगर मैं आपकी प्रशंसा करता हूं तो बहुत संभव है कि आप खुश होना चुनेंगे। लेकिन तनिक सोचिए: है तो यह आपका ही चयन।
किसी प्रतिक्रिया का चयन करते समय अगर आप एक पल के लिए रुक जाएं और दो क़दम पीछे जा कर अपने उन चयनचुनावों को एक बार देख लें जो आपने चुने हैं, तो केवल इतना करने से ही आप अनजाने में की गई प्रतिक्रिया की समूची प्रक्रिया को सजग होकर देख सकते हैं। सजग होकर अपने चयन- चुनाव को देखने का यह तरीका आपको बहुत शक्ति देगा।
प्रकृति की यह एक बहुत रोचक व्यवस्था है कि वह आपको सही चयन करने में सहायता करती है। यह व्यवस्था आपके शरीर में संवेदना के साथ जुड़ी हुई रहती है। आपका शरीर दो प्रकार की संवेदनाएं महसूस करता है: एक संवेदना वह होती है जिसमें आप सहजता महसूस करते हैं, और दूसरी वह होती है जिसमें आप असहजता महसूस करते हैं।
जब आप सजग रूप से कोई कर्म करने का चयन करें तब आप अपने शरीर पर ध्यान दीजिए और उससे पूछिए, “अगर मैं यह चयन करूं तो क्या होगा ?” अगर आपका शरीर सहजता का संदेश भेजता है तो वह चयन सही है। लेकिन, अगर आपका शरीर असहज होने का संदेश भेजता है तो वह चयन उचित नहीं है।
न्यूनतम प्रयास का सिद्धांत
सफलता का चौथा आध्यात्मिक सिद्धांत है न्यूनतम प्रयास का सिद्धांत। यह सिद्धांत इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति की प्रज्ञा न्यूनतम प्रयास के साथ कार्य किया करती है। कम से कम प्रयास में अधिक से अधिक उपलब्धि” वाले इस सिद्धांत को कारगर करने के लिए आपको तीन काम करने हैं।
पहला है स्वीकार करना। स्वीकार करने का सीधा सा अर्थ है कि आपको संकल्प करना है: “आज मैं लोगों, स्थितियों, परिस्थितियों और घटनाओं को यथावत स्वीकार करूंगा।” अर्थात, मैं यह स्वीकार करके चलूंगा कि प्रत्यक्ष पल वैसा ही है जैसा कि इसे होना था, क्योंकि सारा जगत ठीक वैसा ही है जैसा कि इसे होना था।
दूसरा काम है ज़िम्मेदारी लेने का। ज़िम्मेदारी लेने का अर्थ क्या है? ज़िम्मेदारी लेने का अर्थ है अपनी किसी भी स्थिति का, और स्वयं का भी, दोष किसी दूसरे के मत्थे नहीं मढ़ना। ज़िम्मेदारी को स्वीकार करने का अर्थ है जो भी स्थिति है उसे यथावत स्वीकार करने की रचनात्मक प्रतिक्रिया करने की क्षमता का आपमें होना।
तीसरा काम है अपना बचाव न करना, और इसका अर्थ है कि आप अपने बचाव में, यानी अपने दृष्टिकोण के बचाव में, वादविवाद न करने के प्रति हमेशा सजग रहें, यानी आप इस बहस में पड़ना छोड़ दें कि दूसरे लोग आपके दृष्टिकोण को, आपकी बात को, माने ही मानें।
क्योकि लोग अपना निन्यान्वें प्रतिशत समय अपने दृष्टिकोण का, अपनी बात का बचाव करने में ही गंवा दिया करते हैं। अगर आप अपने दृष्टिकोण को, अपनी बात को सही सिद्ध करने की तलब को छोड़ दें तो वादविवाद में गंवाई जाने वाली ऊर्जा आपको किसी अन्य सार्थक सदुपयोग के लिए उपलब्ध रहेगी।
इरादे और इच्छा का सिद्धांत
यह सिद्धांत इस तथ्य पर आधारित है कि ऊर्जा और प्रज्ञा संपूर्ण प्रकृति में सर्वत्र विद्यमान रहते हैं। अपने इरादे द्वारा आप अपने सपनों व इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रकृति के विधानों को सचमुच आदेश दे सकते हैं – लेकिन, शर्त यह है कि आप प्रकृति के अन्य विधानों का उल्लंघन न कर रहे हों।
ब्रह्मांडीय कंप्यूटर को उसकी असीम संयोजन शक्ति के साथ आप अपने लिए कार्य करने पर लगा सकते हैं। आप सृजन के उस आधारभूत तल तक जा सकते हैं और फिर अपने इरादे को वहां जता सकते हैं, और इस प्रकार केवल अपने इरादे को जता देने भर से ब्रह्मांड के अनंत व असीम विस्तार को आप अपने लिए काम पर लगा सकते हैं।
वर्तमान दरअसल संभावनाओं का ऐसा जीवंत क्षेत्र होता है जो स्वयं को अमूर्त बल के रूप में अनुभव किया करता है, वह बल चाहे प्रकाश हो, ऊष्मा हो, विद्युत हो, हो, या गुरुत्वाकर्षण हो। ये बल न तो भूतकाल में होते हैं और न ही भविष्यकाल में। ये बल होते हैं केवल ‘अब’ में, वर्तमान में।
अनासक्ति का सिद्धांत
अनासक्ति का सिद्धांत कहता है कि इस भौतिक संसार में कुछ भी पाने के लिए आपको इसके प्रति अपनी आसक्ति को त्यागना होगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप अपनी कोई इच्छा पैदा करने का इरादा करना ही छोड़ दें। आप इरादे को न छोड़ें, और इच्छा को भी न छोड़ें। बल्कि, आप फल के प्रति अपनी आसक्ति को छोड़ दें, बस।
ऐसा करना बड़ा जबरदस्त काम है। जब भी आप फल के प्रति अपनी आसक्ति को छोड़ देंगे, और साथ ही अनासक्ति के साथ अपने एकाग्र इरादे को जोड़ देंगे, तब आपको वह सब मिल जायेगा जिसकी आप इच्छा करेंगे। अनासक्ति के जरिए आप वह सब कुछ पा सकते हैं जो आप चाहते हैं क्योंकि अनासक्ति आपके सच्चे स्वरूप की असंदिग्ध शक्ति पर आधारित रहा करती है।
धर्म का या जीवन के ध्येय का सिद्धांत
धर्म शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है “जीवन का ध्येय”। धर्म का सिद्धांत कहता है कि किसी प्रयोजन को पूरा करने के लिए हमने यह शरीर धारण किया है। इस सिद्धांत के अनुसार, आपमें एक अद्वितीय प्रतिभा है और उसे अभिव्यक्त करने की एक अद्वितीय विधा भी आपमें है।
कुछ तो ऐसा है ही जिसे कि आप संसार में किसी के भी मुकाबले बेहतर कर सकते हैं – लेकिन, हर अद्वितीय प्रतिभा के लिए तथा उसे अभिव्यक्त करने की अद्वितीय विधा के लिए, कुछ अद्वितीय आवश्यकताएं भी होती हैं।
जब ये आवश्यकताएं आपकी रचनात्मक प्रतिभा के अनुकूल हो जाती हैं, तब वह अनुकूलता ही समृद्धि व संपन्नता पैदा करने वाली चिंगारी बन जाती है। उन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपनी प्रतिभाओं की अभिव्यक्ति आपके लिए असीम धनसंपदा पैदा कर देती है।
इसलिए बैठ जाइए और इन दो प्रश्नों के उत्तर की सूची बनाइए: स्वयं से पूछिए कि अगर पैसे की कोई चिंता न हो और आपके पास समय ही समय हो और पैसा ही पैसा हो तो आप क्या करेंगे ? अगर आप तब भी वही करेंगे जो कि आप अब कर रहे हैं तो आप धर्म पर ही चल रहे हैं क्योंकि जो आप कर रहे हैं उसके लिए आपमें जुनून है, यानी आप अपनी अनन्य व अद्वितीय प्रतिभा को प्रकट कर रहे हैं।
फिर, स्वयं से पूछिए: मानव सेवा करने के लिए मैं अधिकतम क्या करूं? इस प्रश्न का उत्तर स्वयं दीजिए और उस पर चलना शुरू कीजिए।
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