The Four Agreements Book Summary in Hindi by Don Miguel Ruiz: आज की इस आर्टिकल The Four Agreements Book Summary in Hindi by Don Miguel Ruiz में हम हमारे भीतर जन्म से ही, किसी भी बात पर ध्यान केंद्रित करके उसका अनुभव करने की क्षमता होती है।
हम एक साथ बहुत सारी चीज़ों को अनुभव के साथ समझ सकते हैं। इसी क्षमता की वजह से हम यह तय कर सकते हैं कि हमें जीवन में क्या चाहिए और क्या नहीं चाहिए। तो चलिए शुरू करते है बिना किसी देरी की।
विषय सूची
अपने शब्दों के साथ रहें निष्पाप
मान लें कि एक बच्चा परवरिश के दौरान यह मान ले कि मैं मूर्ख हूँ। समय के साथ धीरे-धीरे उसकी यह धारणा और भी मज़बूत हो जाती है। फिर वह ऐसी कुछ हरकतें करने लगता है, जिससे यह सिद्ध होता है कि वाकई में वह मूर्ख है। थोड़ा बड़ा होने के बाद वह लड़का कुछ गलतियाँ करता है और फिर कहता है, मैं क्या करूँ, मैं तो मूर्ख हूँ ना…!
तो ऐसी गलतियाँ मुझसे होंगी ही…… फिर एक दिन कोई उसको विश्वास दिलाकर, आपका ध्यान उस शब्द से हटा देता है और उसको बताता है कि वह मूर्ख नहीं हैं। फिर वह उसकी बात पर विश्वास करते हुए एक नया समझौता तैयार करते हैं। नतीजन, वह स्वयं को मूर्ख नहीं मानते और वैसी हरकतें भी उससे नहीं होतीं, जिससे वह मूर्ख साबित होता था। (The Four Agreements Book Summary in Hindi)
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अगर आप अपने साथ यह समझौता कर लेते हैं कि आप अपने शब्दों के साथ हमेशा निष्पाप रहेंगे। तो निश्चित ही आपके जीवन में मौजूद सारी नकारात्मक भावनाएँ खत्म हो जाएँगी।
किसी भी बात को निजी तौर पर न लें
लोग जो भी कहें, करें या सोंचे; उन बातों को व्यक्तिगत तौर पर न लें। अगर वे आपको एक अच्छा इंसान मानते हैं तो वे आपकी वजह से ऐसा नहीं मानते हैं। क्योंकि आप पहले से जानते हैं कि आप एक अच्छे इंसान हैं। इसके लिए जरूरी नहीं है कि कोई और आकर आपको आपकी ही अच्छाई बताए।
किसी के भी द्वारा कही गई अच्छी और बुरी दोनों ही बातों को निजी तौर पर न लें। क्योंकि जब आप किसी बात को ज़रूरत से अधिक महत्त्व देते हैं, उसे निजी तौर पर लेते हैं तो ऐसा करके आप अपने जीवन में समस्याओं को न्यौता देते हैं।
पहले से धारणाएँ न बनाएँ
हमारा मन हमेशा सुरक्षित रहना चाहता है। इसके लिए वह हर बात की सफाई देता है और सारी बातों को समझाने का प्रयास करता है। एक ही समय पर हमारे मन में कई सारे सवाल पैदा होते हैं लेकिन उसे कोशिश करने के बावजूद भी कई सवालों के जवाब नहीं मिलते हैं। ऐसे समय पर मन के द्वारा दिया गया जवाब सही है या नहीं, इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन हमारा मन जवाब जरूर देता है। इससे हम सुरक्षित महसूस करते हैं और इसीलिए हम पूर्वधारणाएँ बनाते हैं। यदि सामनेवाले ने कुछ कहा तो हम उसकी बात का हमें जैसा चाहिए वैसा अर्थ निकालकर एक नई धारणा बनाते हैं। यह सच है लेकिन यदि सामनेवाला कुछ न बोले तो भी हम उसके न बोलने का भी एक अर्थ निकालते हैं और धारणा बनाते हैं।
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उदाहरण:
एक लड़का शादी करने का निर्णय लेता है। उसे ऐसा लगता है कि शादी के बारे में उसकी और उसके जीवनसाथी की धारणाएँ एक जैसी ही हैं। लेकिन शादी के कुछ महीनों बाद ही वह समझने लगता है कि उसकी यह धारणा गलत थी। इसी धारणा की वजह से उसके रिश्ते में संघर्ष पैदा होता है।
जब पति काम से वापस आता है तो उसे पता चलता है कि किसी कारण से उसकी पत्नी नाराज़ है। लेकिन उसे कभी भी अपनी पत्नी की नाराज़गी की वजह समझ में नहीं आती।
पत्नी हमेशा अपने पति से यह उम्मीद रखती है कि पति को कुछ बताए बिना ही उसे सब पता चल जाए, मानो वह उसका मन पढ़ना जानता हो। लेकिन जब पति अपनी पत्नी की ऐसी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता तो पत्नी मायूस और नाराज़ हो जाती है। परिणास्वरूप उनके बीच आपसी गलतफहमी और बहस होती है।
आप जो भी चाहते हों, उसे कहने का साहस रखें। हर किसी को अपनी हाँ या ना कहने का अधिकार होता है। जिस तरह आप सवाल पूछने का अधिकार रखते हैं, उसी तरह हर किसी को आपसे सवाल पूछने का अधिकार है और आपको हाँ या ना कहने का अधिकार है।
अगर आपको कोई बात समझ में न आए तो बिना कोई धारणा बनाए उस बात को दोबारा पूछ लें। जिस दिन आप धारणाएँ बनाने के बजाय स्पष्ट व सटीक बात करना सीख लेंगे, उस दिन आप भावनात्मक ज़हर से मुक्त हो जाएँगे।
अपनी ओर से हमेशा सर्वश्रेष्ठ कार्य करें
एक इंसान अपने जीवन के कष्टों से मुक्ति पाने हेतु एक बौद्ध मठ में जाता है मठ के भीतर उसे एक बौद्ध गुरु दिखाई दिए, उसने गुरु से पूछा, यदि मैं प्रतिदिन चार घंटे ध्यान करता हूँ तो क्या अपने कष्टों से मुक्त होकर मोक्ष पा सकता हूँ? उसे देखकर गुरु ने कहा, अगर तुम दिन में चार घंटे ध्यान करो तो दस वर्ष में मोक्ष पा लोगे।
उस इंसान को लगा कि वह और बेहतर कर सकता है। इसलिए उसने पूछा, गुरुजी, यदि मैं दिन में आठ घंटे ध्यान करता हूँ तो मोक्ष पाने में कितना समय लगेगा? गुरु ने उसे कहा, अगर तुम दिन में आठ घंटे ध्यान करो तो शायद बीस वर्ष में मोक्ष पा लोगे।
ये जवाब सुनकर वह इंसान चौंक पड़ा और सोचने लगा कि अधिक ध्यान करने पर दुगना समय क्यों लगेगा? गुरु ने जवाब दिया, तुम यहाँ अपने जीवन को समर्पित करने नहीं आए हो।
यहाँ आने के पीछे तुम्हारा उद्देश्य है, खुशी और प्रेम से भरा जीवन जीना। अगर तुम दो घंटों के ध्यान को बेहतर तरीके से करने की बजाय दिन के आठ घंटे ध्यान को दे दोगे तो थकान के सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा और तुम जीवन का आनंद खो दोगे।
ध्यान के दौरान एक समय ऐसा आता है, जिसमें मिली हुई ऊर्जा तुम्हें अपना जीवन खुशी से जीने की प्रेरणा देगी। मगर अधिक समय तक ध्यान करने के प्रयास में तुम वह समय भी गँवा बैठोगे। भले ही तुम कम समय तक ध्यान करो, लेकिन वह सर्वश्रेष्ठ करो। इसी से तुम्हारा जीवन प्रेम, खुशी और उत्साह से भर जाएगा।
अपने सर्वश्रेष्ठ से न कम और न अधिक अच्छा कार्य करें। यदि आप अपने सर्वश्रेष्ठ से भी बढ़कर और अच्छा कार्य करने का प्रयास करेंगे तो उसमें आपकी अधिक ऊर्जा नष्ट होगी और कार्य वैसा होगा नहीं, जैसा आप करना चाहते थे।
लेकिन यदि आप अपनी काबिलियत से भी बहुत कम काम करते हैं तो आपको निराशा महसूस होता है। ऐसे में आप खुद को ही परखने लगते हैं। इसलिए सबसे आसान बात यह है कि आप अपनी ओर से हमेशा सर्वश्रेष्ठ कार्य करते रहें।
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Closing Remarks
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